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________________ 173/श्री दान-प्रदीप पल भर के लिए भी रहना योग्य नहीं है।" ___ इस प्रकार निश्चय करके कुमार ने शुक को साथ लेकर राजा के पास जाकर विनति की-“हे राजन! यह शुकराज आज रत्नपुर से यहां आया है। इसने मेरे वियोग से पीड़ित माता-पिता का हाल मुझे बताया है। अब मेरा मन माता-पिता के दर्शन के लिए अत्यन्त बेचैन हो गया है। आप मुझे शीघ्र ही जाने की अनुमति प्रदान कीजिए।" ___ यह सुनकर बुद्धिमान राजा ने गद्गद् कण्ठ से कहा-“हे वत्स! तुम जाओ-ऐसा अगर मैं कहूं, तो योग्य नहीं होगा। यहां रहने के लिए कहूं यह भी ठीक नहीं है। अगर मौन रहूं, तो उदासीनता प्रकट होती है। तो फिर मैं क्या कहूं? अथवा तो ये सब विचार करने से भी क्या फायदा? इतना ही कहता हूं कि शीघ्रतापूर्वक वियोग से पीड़ित माता-पिता को प्रसन्न करो।" इस प्रकार कुमार को कहकर राजा ने अपनी पुत्री को अपने पास बुलाया और उसे इस प्रकार शिक्षा प्रदान की-“हे पुत्री! तुम्हारा पति तुम्हारे पास आय, तो उठकर खड़ी होना। उसके साथ बातचीत करने में नम्रता रखना। उसके चरणों पर ही दृष्टि रखना। उसे बैठने के लिए आसन आमंत्रित करना । उसकी सम्पूर्ण सेवा स्वयं करना। उसके सोने के बाद सोना और उसके जागृत होने से पहले शय्या का त्याग करना। पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार कुलवधू के शुद्ध धर्म बताये हैं।" .. इस प्रकार रत्नमंजरी को शिक्षा देकर राजा ने अपनी पुत्री व दामाद को विदा किया। कुमार भी अपनी प्रिया, शुक और विद्याधर मित्रों के साथ विशाल विमान पर आरूढ़ होकर आकाशमार्ग से रवाना हुआ। वायु की तरह आकाश का उल्लंघन करते हुए क्षणभर में रत्नपुरी के समीप पहुँच गया। विमान को आता हुआ देखकर लोगों ने तर्क किया-"क्या समुद्र में उत्पन्न हुए इन रत्नों के समूह को आकाश में वायु ने उछाला है? अथवा क्या सूर्यादि ज्योतिष का समूह निरन्तर भ्रमण करने के श्रम के भय से आकाश से पृथ्वी पर आ रहा है? अथवा पुण्यफल को प्रत्यक्ष दिखाने के लिए स्वयं स्वर्ग ही धरती पर उतर रहा है?" इस प्रकार पुरजनों को कल्पना करवाती हुई विमानों की श्रेणि आकाश में शोभा को प्राप्त हो रही थी। उसके बाद सबसे पहले शुकराज राजा के पास गया और सिंहासनासीन व पुत्र के शोक से पीड़ित राजा को उसने विनति की "हे देव! खेद का त्याग करें। आनंद को धारण करें, क्योंकि आपका पुत्र अपनी प्रिया व अद्भुत ऐश्वर्य के साथ यहां आ रहा है।" ___ यह सुनकर पुत्र के आगमन से राजा अत्यन्त आनन्दित हुआ। नगर में स्थान-स्थान पर विशाल उत्सव की शुरुआत इस प्रकार करवायी- स्थान-स्थान पर आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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