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________________ 124/श्री दान-प्रदीप पात्र बना। इस प्रकार उस हाथी को वश में करके तीक्ष्ण अंकुश के द्वारा जैसे इन्द्र ऐरावत हाथी क्रीड़ापूर्वक चलाता है, उसी प्रकार उसे चलाया। यह सब देखकर राजपुत्री का हृदय उसके गुणों के आधीन हो गया। उसके उपकार रूपी द्रव्य से खरीदी हुई के समान कुमारी ने उस कुमार को हर्षपूर्वक मन ही मन में वर लिया। नगर के लोग मानो गवैये बन गये हों, इस प्रकार से उसके गुणों को गाने लगे-"अहो! इसकी शक्ति अद्भुत है! यह कुमार चिरकाल तक जयवन्त वर्ते।" फिर हाथी को मानो क्रीड़ा करवाते हुए और पुर–स्त्रियों के नेत्रों को आनंदित करते हुए कुमार ने हाथी को पुनः अपने स्थान पर लेजाकर बांध दिया। इस तरह उसने अपनी वीरता से प्रसिद्धि प्राप्त की। यह घटना जानकर राजा मानभंग ने विचार किया-"यह वणिकपुत्र नहीं हो सकता। आकृति और प्रकृति के अनुसार तो यह क्षत्रियपुत्र ही जान पड़ता है। क्या यही युवक उस देववाणी को सफल करेगा? तो इस शत्रु को मारने का उपाय मुझे शीघ्र ही करना चाहिए। कहा भी है कि किसी भी कार्य को करने में पुरुष को पुरुषार्थ का त्याग नहीं करना चाहिए।" इस प्रकार का विचार करके उस दुष्ट राजा ने सुभटों को आज्ञा प्रदान की-"युद्धकला में कुशल लाखों शूरवीर योद्धाओं के होते हुए भी इस एक वणिकपुत्र ने हाथी को वश में किया है-यह बात राज्य में चण्डाल की तरह मलिनता को विस्तृत बनाती है। जब तक वह वणिकपुत्र जीवित रहेगा, तब तक यह अपवाद वृद्धि को प्राप्त होता रहेगा। अतः तुमलोगों को तुरन्त ही उसे यमराज का अतिथि बनाना होगा।" ___ यह सुनकर सभी योद्धा अत्यन्त क्रोधित हुए। कवच पहनकर हाथों में शस्त्र लेकर उसे मारने के लिए उसे उसी प्रकार से चारों तरफ से घेर लिया, जिस प्रकार शूकर हाथी को घेर लेते हैं। ये यमराज की तरह मुझे मारने आये हैं यह जानकर कुमार अभयसिंह तत्काल देव की तरह अदृश्य होकर अपने घर पहुँच गया। यह देखकर सैनिक निराश हो गये। उन्होंने राजा से कहा-“हे स्वामी! हम जैसे ही उसको पकड़ने के लिए आगे बढ़े, वैसे ही वह अदृश्य हो गया। चारों तरफ सूक्ष्मता से खोजने के बाद भी वह हमें दिखायी नहीं दिया।" यह सुनकर राजा की आशा पर तुषारापात हुआ। उसने सैनिकों को तिरस्कृत करके भेज दिया। थोड़ी देर बाद राजा का कोप कुछ शान्त हुआ। तभी राजकन्या के द्वारा प्रेषित वसंतसेना नामक धात्री ने आकर राजा से निवेदन किया-“हे देव! आपको ज्ञात है कि अभी तक आपकी पुत्री को कोई भी वर पसन्द नहीं आया है। सौंदर्य के द्वारा कामदेव को भी
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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