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________________ 111/श्री दान-प्रदीप कीजिए।" यह सुनकर राजा के हृदय में दया उत्पन्न हुई, पर 'चोर को नहीं छोड़ना चाहिए'-ऐसी नीति होने के कारण राजा ने कोतवाल को आज्ञा दी-"इसे शूली पर चढ़ाओ।" __ तब राजा के पास बैठी प्रियंकरा रानी ने विचार किया कि यह बिचारा दया का पात्र है। अपनी भोगाशा को पूर्ण किये बिना ही मरण को प्राप्त हो जायगा। इस प्रकार मन में दया उत्पन्न होने के कारण रानी ने राजा से विनति की "हे स्वामी! इस चोर को केवल आज के लिए मुझे सौंप दें, जिससे मैं इसे इसका मनवांछित सुखोपभोग करवा सकूँ। इस बिचारे को एक दिन के लिए तो अपनी इच्छा पूर्ण करने दें । हे प्रजानाथ! एक दिन बाद आपको जो उचित लगे, वह करें।" यह सुनकर राजा ने पट्टरानी के मान की रक्षा के लिए उसे अनुज्ञा दे दी। तब रानी उसे महल में ले गयी। सबसे पहले उसने सेवकों के द्वारा शतपाक तेल से उसके बदन की मालिश करवायी, फिर सुगन्धित चूर्णादि के द्वारा उसका उबटन करवाया। फिर दासियों के द्वारा उसे सुगन्धित जल से स्नान करवाया। उसके बाद कोमल वस्त्र से उसका शरीर पोंछने के बाद उसे नये व सुन्दर व बहूमूल्य वस्त्र पहनवाये। उसके केशों को पुष्पमाला के साथ सुन्दर रीति से गूंथवाया। चन्दनादि के लेप द्वारा उसके शरीर को सुगन्धित किया। मुकुट व अलंकारों के द्वारा उसके शरीर को शृंगारित किया। फिर अमृत को भी तिरस्कृत करनेवाली सरस रसवती (रसोई) स्वर्णपात्र में परोसकर सेवकों द्वारा पंखा करवाते हुए आनंदपूर्वक उसे जिमाया। फिर कपूरमिश्रित नागरवल्ली के पान का बीड़ा देकर पलंग पर बिठाकर उसे नाटकादि दिखाकर उसका विनोद करवाया। शाम के समय उसे श्रेष्ठ अश्व पर बिठाकर सिर पर मयुरपिच्छ का छत्र धारण करवाकर आगे-आगे संगीत बजाते हुए सिपाहियों के परिवार के साथ उसे राजसभा में भेजा। उत्सवपूर्वक आये हुए उसने राजसभा में राजा को प्रणाम किया। सभासद उसे देखकर तरह-तरह की बातें करने लगे। रात्रि में रानी ने उसे उत्तम महल की श्रेष्ठ स्वर्णशय्या पर सुलाया। वेश्याएँ उसकी सेवा में हाजिर थीं। इस प्रकार उसने रात्रि व्यतीत की। प्रातःकाल होने पर उसे पूर्व का चोरवेश पहनाकर रानी ने राजा के पास भेजा। उस रानी ने उसके एक दिन के भोग के लिए पाँचसौ स्वर्णमुद्राएँ खर्च कीं। तब दूसरी रानी ने भी राजा के पास उसी प्रकार प्रार्थना की और स्पर्धा की भावना से चोर के भोग के लिए पहली रानी से भी ज्यादा खर्च किया। इस प्रकार अन्य-अन्य रानियों ने भी ईर्ष्याभाव के कारण पूर्व की अपेक्षा ज्यादा खर्च
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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