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________________ 1 / श्री दान- प्रदीप श्री आदिनाथाय नमः प्रस्तावना जैन दर्शन की ग्रंथ समृद्धि चार प्रकार के अनुयोग से पल्लवित है। उनमें से चरितानुयोग सुगम होने से लोकप्रिय होने के साथ ही साथ बोधक होने की विशेष योग्यता को भी धारण करता है। मनुष्य के स्वभाव के विविध चित्र कथानुयोग में ही पाये जा सकते हैं। धर्म का अद्भुत वर्णन जैन कथा साहित्य के प्रत्येक भाग में प्राप्त होता है। इसके साथ ही उसमें यह खूबी भी रही हुई है कि प्रत्येक प्रसंग पर सत्कार्य का शुभ फल और दुष्कृत्य का अशुभ फल दर्शाकर कथानुयोग के पाठकों को धार्मिक और नैतिक प्रवर्त्तन का लाभ करवाता है। सर्वज्ञ-भाषित शास्त्रों को सत्यता के साथ सावधानीपूर्वक उतारकर उसका विस्तार सामान्य जन को समझ में आ सके-इस प्रकार से नियुक्ति भाष्य, चूर्णि, टीका, टब्बा, रास आदि नव - पल्लवित शाखाओं के रूप में विस्तृत करके हमारे महान पूर्वाचार्यों और विद्वान मुनि - महाराजों ने जैन साहित्य की अनुपम सेवा की है। उन शास्त्रों में रहे हुए तत्त्व और चर्चित विषयों के रस कस लाभ सामान्य जीव भी सरलता से ले सकें, ऐसे उच्च आशय को ध्यान में रखते हुए किसी भी विषय पर कथानुयोग की रचना की है, क्योंकि कथानुयोग उपदेश के लिए एक सबल साधन माना जाता है। अखिल भारत के कथा, इतिहास और वार्त्ता रूपी साहित्य में तत्त्व और विद्वत्ता की दृष्टि से अवलोकन करनेवालों के लिए जैन अनुयोग प्रशंसनीय बने बिना नहीं रह सकता । चरित्र - ग्रंथों के वाचक-वर्ग के लिए एक बात खास रूप से लक्ष्य में रखनी चाहिए कि किसी भी धर्मवीर या दानवीर नायक के बाह्य चरित्र के साथ उसके आन्तरिक चरित्र का विचार करना भी घटित होता है, क्योंकि आन्तरिक चरित्र की शुद्धि से ही बाह्य चरित्र आकर्षक बनता है । आन्तरिक चरित्र के 1 द्वारा गुप्त रूप से भावित किये गये सत्कार्य जगत में बाह्य रूप से दृष्टिगत होते हुए जन - समाज की आत्मा में विस्मयता का संचार करते हैं और वे अनुकरणीय भी बनते हैं। कथानुयोग के ग्रंथों में धर्म रूपी कल्पवृक्ष की चार शाखाओं - दान, शील, तप और भावना के स्वरूप-वर्णन के साथ सम्बन्ध रखनेवाले अद्भुत चमत्कारिक दानवीर पुरुषों के चरित्रों से सीखने, जानने और मनन करने का अत्यधिक विषय मिलता है। इतना ही नहीं, उन चार प्रकार की शाखाओं में से एक शाखा-दान रूपी धर्म को प्राप्त करने से भी कोई भी मनुष्य मोक्ष के निकट पहुँच सकता है। शास्त्रकारों ने तो यहां तक कहा है कि धर्म की इन चार शाखाओं में से तीन शाखाएँ - शील, तप और भाव जहां आदरनेवाले के लिए उपकारक होती हैं, वहीं दान धर्म तो ग्रहणकर्त्ता और दानदाता - दोनों के लिए उपकारक सिद्ध होता है। इतना ही नहीं, इस दानधर्म की महिमा का वर्णन सर्वज्ञों ने भी अपूर्व प्रकार से किया है। इस दानधर्म को स्पष्ट प्रकार से प्रकट करनेवाला और उसमें आनेवाले दानवीरों के चरित्रों के लिए कोई खास ग्रंथ, जो पठन-पाठन के योग्य हो, उसकी जरुरत का विचार करते हुए यह "दान प्रदीप' नामक ग्रंथ हमने मूल के आधार पर गुजराती अनुवाद से हिन्दी में भाषान्तर करके प्रकट किया है। शास्त्रों में कहा गया है कि पृथ्वी का भूषण पुरुष है, पुरुष का भूषण उत्तम लक्ष्मी है और लक्ष्मी
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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