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________________ 93 / श्री दान- प्रदीप करते-करते थक जाने से वे क्षणभर में ही निद्रा को प्राप्त हो गये । उपाध्याय जाग रहे थे। उस समय आकाश में से दो चारण मुनि जा रहे थे । एक ही गुरु के उन तीन शिष्यों को भिन्न–भिन्न गति में जानेवाले जानकर व देखकर वे परस्पर कहने लगे- "इन तीनों में से एक स्वर्ग में जायगा और अन्य दो नरक में जायंगे । प्राणियों की गति अपने-अपने कर्म के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। " यह सुनकर क्षीरकदम्बक आचार्य मन में खिन्न होते हुए विचार करने लगे-"अहो ! मेरे द्वारा पढ़ाये गये दो शिष्य नरक में जायंगे ? यह तो बहुत ही खेद की बात है ।" प्रातःकाल होने पर उपाध्याय ने विचार किया कि इन तीनों में से कौन स्वर्ग में जायगा और कौन नरक में जायंगे - इसकी परीक्षा करनी चाहिए। उन्होंने तीनों शिष्यों को एक साथ बुलाकर उन्हें एक-एक आटे का बना हुआ मुर्गा देकर कहा - " तुमलोग इसे ऐसे स्थान पर ले जाकर मारना, जहां कोई न देखता हो ।" वसु और पर्वत ने एकान्त स्थान में जाकर अपने-अपने मुर्गे का हनन कर दिया। इसी के साथ उन्होंने अपनी सद्गति का भी हनन कर दिया। उधर नारद नगर से अत्यधिक दूर निर्जन प्रदेश में जाकर भी चारों दिशाओं में देखता हुआ विचार करने लगा -"पूज्य गुरुदेव ने यह आज्ञा दी है कि जहां कोई न देखता हो, वहां मारना है । पर मैं तो हर जगह देख रहा हूं। फिर सभी पक्षी भी देख रहे हैं, लोकपाल देवता देख रहे हैं और ज्ञानी पुरुष भी अपने ज्ञान में देख ही रहे हैं । अतः त्रिजगत में ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां कोई न देखता हो । अतः गुरु- वचनों का तात्पर्य यह है कि यह मुर्गा हनने - योग्य ही नहीं है । करुणा में तत्पर गुरु - महाराज तो हमेशा हिँसा से दूर ही रहते हैं । अतः ऐसा आदेश तो हमारी करुणा की परीक्षा लेने के लिए ही दिया है - ऐसा जान पड़ता है ।" I इस प्रकार विचार करके वह मुर्गे को मारे बिना ही वापस लौट आया। उसे न मारने का कारण आकर गुरु- महाराज को बताया। गुरु महाराज को पता चल गया कि यह शिष्य निश्चय ही स्वर्ग जायगा । अतः प्रसन्न होकर उसका आलिंगन किया। महान पुरुष किसी भी कार्य में स्व-पर का भेद नहीं करते, बल्कि जिनमें गुण होते हैं, उसी पर प्रीति रखते हैं । उधर वसु और पर्वत भी वापस आये और कहा कि जहां कोई न था, वहां हमने मुर्गे को मार डाला । यह सुनकर गुरु ने आक्रोश करते हुए उन दोनों से कहा- "हे पापियों! तुम दोनों तो अपने-आपको देख रहे थे । पक्षी आदि भी तो देख रहे थे। फिर तुम दोनों ने कैसे मुर्गे को मार डाला?”
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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