SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ वे अंकोर्नु पण जल्दी परिवर्तन याय छे. पांच पदना प्रस्तारमां त्रण अंकोना परिवर्तनने जरा विलंब थाय छे तेथी कायमना वे अंको पण धीमे धीमे एटले छ छ प्रस्तारे परिवर्तन पामे छेजेम जेम वधारे पद तेम तेम परिवर्तन धीमे धीमे थाय अने प्रस्तार वधे. प्रस्तारना अंकनुं तात्पर्य. .. पांच पदनी अनुपूर्वीमां पांच पद ते अरिहंत, सिद्ध, आ. चार्य, उपाध्याय अने साधु एम कल्पना करी छे. प्रस्तारमा ज्यां एकडो छे त्यां ' नमो अरिहंताणं ' ज्यां वगडो छे त्यां 'नमो सिद्धाणं' ज्यां त्रगडो आवे त्यां नमो आयरियाणं' ज्यां चोगडो आवे त्यां नमो उवज्झायाणं' अने ज्यां पांचडो आवे त्यां 'नमो लोए सव्वसाहणं' बोलg. एम जे जे पदमां जे जे अंकोनी कल्पना करी होय ते प्रमाणे अंकोर्नु तात्पर्य समजी लेबुं. प्रकरण ३ जु-अनुपूर्वीना प्रस्तारनो नष्ट विधि. जेटलां पदनी अनुपूर्वीना प्रस्तारमाथी नष्ट शोधवो होय तेटला कोठानो संवेध यंत्र व पंक्तिवाळो पूर्ववत् वनाववो अने तेमां अंको पण आगल कह्या प्रमाणे भरवा. पछी जे नंबरनो प्रस्तार पुछयो होय तेमांथी एक बाद करी वाकीनी संख्याने संवेध यंत्रमांना जे जे अंकथी भागी शकाय ते अंकथी क्रमसर भागवो. जे जे अंकथी भागाकार थाय तेनी नीचे लब्धांक मुकवा अने शेष स्थाने शून्य मुकवां. वनेनो सरवाळो करवो.
SR No.022015
Book TitlePrastar Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Swami
PublisherAgarchand Bhairodan Sethiya Jain Granthalay
Publication Year1925
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy