SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दानशासनम् स्नेहं कुर्वन्तुरकटं संघवर्गे शुद्धस्तस्मिन्वावगाह निमग्नः । क्रुदानुन्मूल्येव दोषान् लभेत क्षेत्र शुष्क धान्यलाभं कुटुंबी ॥ अर्थ- जिस प्रकार किसान सूखे खेतमें पानी इत्यादिका सिंचन करके एवं अनेक प्रकारसे संस्कार करके धान्य की प्राप्ति करता है. उसी प्रकार धार्मिक वर्गमें उत्कट स्नेह करके उनके क्रोधादिक विकारोंको शांत करना चाहिये तब जिनाजा करानेवाले को विशिष्ट पुण्यबंध होता है ॥ ८२ ॥ शालिः सज्जनयोगताऽनमभवन्मयं कुयोगाद्यथा। पथ्या पंचरसा लापहरणे दग्धा मलग्राहिणी ॥ नाभिस्साधुसुयोगती मृतमिव स्यात्साधुसंयोगतः ॥ सद्भावं भज साधुतां भज जिन साधुं स्मरन्पूजय ।।८३॥ ___ अर्थ-सज्जनोंके संसर्गसे शाली सस्यसे धान्य निकलते हैं। दुष्टोंके संसर्गसे मद्य निकलता है । पंचरस से युक्त हरडा मल को अपहरण करने में सहकारी है। उसी को यदि जलाकर उपयोगमें लावे तो मलनिरोध में सहकारी हैं । बछनाग सरीखा विष भी योग्य संस्कार करनेवाले वैद्योंको हाथ में जावे तो अमृतके समान हो जाता है। वही यदि नीचवृत्तिवालोंके हाथमें आवे तो विषके समान उपयो गमें आता है। यह सब संसर्ग का प्रभाव है। इस लिए आत्मकल्या. णकी इच्छा रखनेवाले भव्य जीव सदाकाट शुभ परिणामोंमें ही अपने आत्माको लगायो, सजनों की संगति करो, जिनदेव, जिनमुनियों की सेवा व पुजा करो, तब तुम्हारा आत्मा उच्च बनेगा ॥ ८३ ॥ गंधांमःमुममहदंघियुगसंम्पर्शान्पवित्रीकृत। देवेंद्रादिशिरोललाटनयनन्यासचितं मंगलं ॥ तेषां स्पर्शनतस्त एव सकलाः पृता अभोगोचितं ! भाले नेत्रयुगे च भूपनि नया भजनेर्यताम् ।। ८.५।।
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy