SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दानविधिद्रव्यदातपात्रलक्षण दानविधिद्रव्यदातृपात्रलक्षण. प्रणम्य जिनभास्वंतमज्ञानध्वांतभेदिनं । विध्यर्थपात्रदातॄणां वक्ष्ये लक्षणमुत्तमम् ॥ १ ॥ अर्थ--अज्ञानरूपी अंधकारको नाश करनेवाले जिनेंद्रसूर्यको नमस्कार कर उत्तम दानकी विधि, द्रव्य, दाता और पात्रका रक्षण कहूंगा । इस प्रकार आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥१॥ येऽन्यानन्यधनानि चान्यसुकृतान्यन्याघमन्यार्जितं । त्रैरत्नं परदृष्टिबोधचरितं दुर्वृत्तमन्यस्य वा । दातारः समनुग्रहाय ददते दानानि चात्मक्षयम् पात्रापात्रविचारशून्यमनसः कर्माणि ते चिन्वते ॥२॥ __ अर्थ-कोई पात्र अपात्रके विवेकरहित मनुष्य दूसरों के प्रति अनु ग्रहसे, दूसरोंके धनको, दूसरोंके पुण्यको प्राप्त करनेके लिये, दूसरोंके दर्शन ज्ञान चारित्रकी वृद्धिकेलिये, अथवा कुसंयमकी वृद्धिकेलिये, या उनकेप्रति दया करनेकेलिये दान देता है परंतु वह सब पुण्यके लिये नहीं होता है उससे पापार्जन होता है ॥ २ ॥ ... वैर व्याधिरघं च नश्यति लसत्पुण्यं दया वर्द्धते । भूताः पंच वशीभवति रिपवो मित्राणि के बंधवः सद्धर्मानुगुणास्सधर्मचरिताः के धार्मिकाः सदृशः शुद्धाः स्युर्गुरवो वृषे निजनिजेष्टार्थप्रदानेन के ॥ ३ ॥ अर्थ- इस लोकमें समस्त प्राणियोंको उनके मनोनुकूल इष्ट १. दानेन तिष्ठंति यशांसि लोके दानेन भोगाः सुलभा नराणाम् दानेन वश्या रिपवो भवंति तस्मात्सुदानं सततं प्रदेयम् ॥ दानेन भूतानि बशीभवंति दानेन वैराप्यपि यांति नाशम् परोपि बंधुत्वमुपैति दानाहानं तु सर्वव्यसनानि हंति ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy