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________________ है। केवल उपचारभक्ति करा , मुख्यभक्ति नहीं कर सकते हैं। इसलिए मनुष्यों का ही यह भाग्य है कि जहां पात्रदान देने की पात्रता है। ऐसे दुर्लभ मनुष्यभव, इंद्रियपूर्णता, निरोगशरीर, कुलजातिकी शुद्धि आदि साधनोंको पाकर भी जो दानादिक सत्कार्य नहीं करते हैं तो समझना चाहिये उनका संसार दी है। ___इस ग्रंथमें चतुर्विधदानका सूक्ष्म विवेचन किया गया है। श्री परमपूज्य विद्वान् तपोनिधि स्व. मुनिराज सुधर्मसागरजी महाराज व स्व. धर्मवीर सेठ रावजी सखाराम दोशी की प्रेरणासे इस ग्रंथका मैंने संपादन व अनुवादन किया है । खेद है कि इस ग्रंथके प्रकाशनके समय दोनों महापुरुष यहां नहीं हैं। परंतु आशा है कि परलोकमें उनकी आत्मावोंको शांति होगी। हमें इसके संशोधन के लिए दो ताडपत्र व दो हस्तलिखित इस प्रकार चार प्रतियां मिली थीं। परंतु लेखकोंकी कृपासे. चारों ही प्रतियां अशुद्धियोंसे भरी थीं । तथापि हमने यथामात, आर्षाविरोधसे इस कार्य का संपादन किया है। कहीं दोष नजर आवे तो उसे विद्वद्गण सुधार लेवें वह दोष हमारा समझें । उसके लिए ग्रंथकारको भला बुरा न कहें यह निवेदन है। ग्रंथका प्रकाशन अन्यधार्मिक सज्जनोंके सहयोगसे श्री सेठ गोपिंदनी रावजी दोशीने किया है। हमारे मित्र पं. जिनदासजी शास्त्रीने प्रूफ संशोधनके कार्यमें हमें पूर्ण सहायता दी है। इस लिए उन सब सजनोंके प्रति हम कृतज्ञ हैं। यदि दानकार्यमें उद्युक्त श्रावकोंको इस ग्रंथका उपयोग होजाय तो हम अपना श्रम सफल समझेंगे । इति विनीत वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, . ... ( विद्यावाचस्पति ) .
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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