SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीषलक्षणविधानम् मिली तो केलेके फल का आश्रय छोड देनेवाले कीरके समान दाताको छोड देते हैं ।। ७७ ॥ नो लज्जा नाभिमानो न पटुतरमतिनों विवेको न बंधु-। नों मित्रं नाभिजातिनं च सुकृतबकं न व्रतं धर्मधीन ॥ नो देवो नो गुरु! पतिरिह पितरौ नो वधूतॊ वचोर्थो । नायव्यार्जनं यो ग्रहिल इव स तस्यांगजग्रस्तचित्तः ॥ ७८ ॥ ... अर्थ-जो याचक जन हैं उनको न लज्जा है, न अभिमान है, न तीक्ष्णतर बुद्धि है, न निवेक है, बंधु भी नहीं है, मित्र भी नहीं है, कुलीनता नहीं है, पुण्य नहीं, व्रत नहीं, धर्मबुद्धि नहीं, देव नहीं, गुरु नहीं, पति, मातापिता, स्त्री वगैरे कोई भी नहीं है । वह कामवेदना से पीडित चित्तवाले के समान रहता है ॥ ७८ ॥ साधवो दोषमायान्ति खळसंगात्मभूतकम् । शुद्धान्तो दोषमायाति जारैकसहवासतः ॥ ७९ ॥ अर्थ--दुष्टोंके संगसे सज्जन भी दोषको प्राप्त होते हैं। जारों के सहवाससे शुद्ध अंतःपुरस्त्रियां भी दोष को प्राप्त होती है ॥ ७९ ॥ को वा स्त्रियो वल्लभ एव धीमान्यो गाढसंगं कुरुते स एव ॥ रूपं न वृत्तं न कुलं न जातिः शाकस्य चौच्छिष्टमिवासमीक्षन् ।।. अर्थ-जो पुरुष स्त्रीको दृढसंभोग से खुष करता है, उसी के . ऊपर वह प्रेम करती है । वही उसका वल्लभ है। खिया रूप, चारित्र कुल तथा जातीका विचार नहीं करती है । जैसे कोई दीन पुरुष झूठे शाकका विचार नहीं करता हुआ उसको लेता है । उसी तरह अयोग्य स्त्रियां अयोग्य पुरुषको भी अपना वल्लभ समझती है ॥ ८ ॥ दैव लौकिक उत्साही ये विघ्नं कुर्वते यदि ॥ देशगेहे वरक्षोभो मृत्युवा सर्वथा भवेत् ।। ८१॥ अर्थ--जो व्यक्ति दैव कार्यमें व लौकिक कार्य में विघ्न उपस्थित
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy