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________________ दामफलविचार २४३ - इसीप्रकार द्वेषसे दिया हुआ दान सफल नहीं होसकता है । करुणासे आई हुए मनसे किये हुए सर्वकार्य सफल व शाश्वत होते हैं ॥१६६॥ पंक्तिभेदकृतफल. पंक्तिभेदे कृते येन बहग्निझुक्तिवर्जितः । भस्मकन्याधिवान्स स्यादन्हिवत्सर्वभक्षकः ॥ १६७ ॥ अर्थ-यदि दाताने पात्रोमें अमुकपात्र मेग उपकारी है, अमुक उपकारी नहीं है इत्यादि प्रकार के विचारसे पंक्तिभेद अर्थात् आहार द्रव्यके देनेमें भेद किया तो उसके फलसे वे दंपति भस्मक रोगसे पीडितके समान तीव्र अग्निके रहते हुए भोजन रहित होते हैं । अग्निके समान भक्ष्याभक्ष्य सर्व पदार्थोका भक्षण करते हैं ॥१६॥ ये स्वस्वामिन्युदासीनास्त्रिकालविभवच्युताः । तथा देवे गुरौ ते स्युत्रिकालसुकृतच्युताः ॥ १६८॥ अर्थ-जो सज्जन अपने स्वामीकी सेवामें उदासीनता को धारण करते हैं वे त्रिकालमें भी संपत्तिको पा नहीं सकते । इसीप्रकार जो सज्जन देव व गुरुकी सेवामें उदासीनताको धारण करते हैं, वे त्रिकालमें पुण्यार्जनकार्यमें च्युत होते हैं ॥ १६८ ॥ उपकारियों का प्रकार कार्पासबीजान्यास्वाद्य दत्त क्षीरं यथा पशुः । ग्रहाः के फलमादाय धर्मकार्य च कुर्वते ॥ १६९ ॥ अर्थ-जिसप्रकार कार्पास बीजको ग्रहण कर गाय भैंस वगैरे दूध देती हैं, एवं जिसप्रकार दूसरोंको कष्ट देनेवाले भूतपिशाच फलादिक प्रहणकर संतुष्ट होते हैं, इसप्रकार कोई २ संसारमें उपकारी होते हैं ॥ १६९ ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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