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________________ दानफलविचार २३१ भूदेवः मुतपोऽन्वितोऽप्यघहरः स्यादग्रजन्मा तत-। बैलोक्याधिपपूजितांत्रिकमलो देवोऽद्वितीयोऽनघः ॥१३९॥ अर्थ-जो निर्दोष सम्यक्त्वको धारण करता है वह विप्र कहलाता है, और जो बुद्धिमान् सम्यक्त्वके साथ व्रताचरण भी करता है वह ब्राह्मण कहलाता है । जो संसाररूपी समुद्र के लिए वडवाग्निके समान है, निर्दोष रत्नत्रयको धारण करता है वह भूदेव है । उच्च तपोंको धारण करनेवाला जो पापोंको नाश करता है, आगेके जन्ममें वह तीनलोकके द्वारा पूजित चरणकमलवाला पूज्य देव ही होता है ॥१३९॥ स्वर्गच्युतोंका लक्षण निशंकता निर्भयतातिवाग्मिता । + निर्भगता वादिजनास्यमूकता ॥ संघे नतिः साधुपदेषु सेवना । रागो गुणेष्वेव दयोगिषूत्तमा ॥ १४० ॥ सत्संगो जिन पूजनं गुरुनतिर्दानप्रसंगःक्षमा। भूतिर्धार्मिकतर्पणं स्वजनसंपूजातिमेधामतिः ॥ आरोग्यं कविता वचो मधुरता स्वप्नेषु तथ्यं रमा-1 हाद लक्ष्म भवेत्कलानिपुणता स्वर्गच्युतानामिदम्॥१४१॥ अर्थ--शंकाराहित्य, निर्भयता, जनमनोहर भाषण, भंगरहितवृत्ति, पादिजनोंको मूक बनानेका सामर्थ्य, जनसंघमें विनय, साधुजनोंके चरण कमलोंकी सेवा, गुणोंमें अनुराग, प्राणियोंके प्रति दया, सत्संगति, जिनेंद्रकी पूजा, मातापिता गुरु आदिका विनय, दानविधानका श्रवण, क्षमा, संपतिप्राप्ति, धार्मिकजनोंका सत्कार, स्वजनोंका आदर, कुशाग्रबुद्धि, आरोग्य, कवितागुण, वचनका माधुर्य, स्वप्न + निर्भगता वादिजनोक्तिभंगिता इति पाठांतरम् ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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