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________________ दानफलविचार २०३ लेते हैं और वहां देवांगनावोंके साथ क्लेशरहित होकर सदा सुख भोगते हैं ॥ ७२ ॥ आयव्ययविवेक आयो वस्तु कियान्व्ययो मम विभज्यालोच्य देवाय यं । दानायापि गृहाय चैवसि सदा कुर्यानिजार्थव्ययं ॥ यो वर्तेत भवेद्रती स लभते पुण्यं धनं कार्षिको । भृत्यायेव परिग्रहाय च करायोपक्षयायात्ममः ॥ ७३ ।। अर्थ-बुद्धिमान किसान सदा इस बातका विचार किया करता है कि मेरे खेतमें उत्पन्न कितना होगा, और व्यय कितना होगा । उससे खेती करनेवाले नौकरोंको मुझे कितना देना होगा। मेरे कुटुंबीजनोंको कितना देना होगा। सरकारी कर कितना भरना होगा एवं बीज भादिका खर्चा व अन्य खर्चा कितना होगा । इत्यादि प्रकारसे आयव्ययको विचार कर खेती करनेसे उसे लाभ होता है । इसी प्रकार पुण्यधनको अर्जन करनेवाला श्रावक इस बातका विचार करें कि मुझे आय कितना है और व्यय कितना है । मेरी संपत्तिसे देवपूजाके लिए कितना लगाना है । दानके लिए कितना लगाना है । कुटुंबियोंके पोषणके लिए कितना लगाना है । मुझे उसे किस प्रकार उपयोग करना चाहिये । इत्यादि विषयको विवेकपूर्वक सम्झकर धनका उपयोग करें तो बाह्यसंपत्ति के साथ अंतरंग संपत्ति ( पुण्य ) भी बढ़ती है ॥७३॥ आयव्ययमनालोच्य यो व्ययत्यनिशं स ना।। विनश्येत्सर्वदा तस्य सुखं स्वप्नेऽपि दुर्लभम् ॥ ७४ ॥ अर्थ- जो व्यक्ति अपने आयव्ययको विचार न कर व्यय करता जाता है वह अवश्य ही एक दिन नष्ट होता है अर्थात् उसे दिवाला निकालना पड़ता है। उसे स्वप्न में भी सुख नहीं मिल सकता है ॥७४॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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