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________________ २७० दानशासनम् AAAAAVAL - अर्थ-जो भूत, प्रेत, पिशाच आदि ग्रहके उपद्रवीको मंत्रवादके द्वारा निवारण करते हैं ऐसे मंत्रवादियोंको भी दान देनेवाले गृहस्थका सुख व संपत्ति बढती है ॥ ११६ ॥ ज्ञात्वा भूतभवद्भाविशुभाशुभफलानि यः ।। . सत्यं वदति तस्यार्थ दातुः पुण्यफलं भवेत् ॥ ११७ ॥ अर्थ-जो व्यक्ति नैमित्तिक शास्त्रके बलसे भूतभविष्यद्वर्तमानके ग्रहोंके उदयके शुभाशुभ फलको सत्यरूपसे कहता है उस दैवज्ञको जो द्रव्य दान करता है उसे पुण्यबंध होता है ॥ ११७ ॥ जिनान्यंत्राणि शांत्यर्थ क्रमेणाराधयत्यपि । - स एव पुण्यपात्रं स्यात्पूजनीयः सुदृष्टिभिः ॥ ११८ ॥ अर्थ-जो व्यक्ति लोकमें रोगादिक शांति के लिए जिनधर्मसंबंधी यंत्रोको कर उसकी आराधना करता है, उसे भी पात्र समझें । भव्यात्माओंके द्वारा वह भी आदरणीय है ॥ ११८ ॥ - द्वादशांगनिविष्टा ये सदृष्टिब्रतिकादयः । " ते पात्रं तारतम्येन प्रवदंति मुनीश्वराः ॥ ११९ ॥ ' अर्थ-जो सदृष्टि व्रतिक आदि ग्यारह प्रतिमामें आचरण करने वाले हैं और बारहवें अंगरूप मुनिधर्मको पालन करनेवाले हैं उन सब को मुनिगण तारतम्य रूपसे पात्र ही कहते हैं ॥ ११९ ॥ शीलेन रक्षितो जीवो न केनाप्यभिभूयते । महाहदानमग्नस्य किं करोति दवानलः ॥ १२० ।। अर्थ-जो अनेक प्रकारके उत्तम चारित्र शील आदिकसे अपनी रक्षा करते हैं उनको दबानेवाले लोकमें कोई भी नहीं है। जो व्यक्ति बड़े भारी सरोवर में डूबा हुआ है उसे जंगलकी आग क्या कर सकती है? ॥ १२० ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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