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________________ - - - १६६ दानशासनम् mmmmmmmmma अर्थ-जो निर्दोष सम्यग्दृष्टि है, माताके समान सर्व जीवोंका हित चाहनेवाला है, ऐसे जैनको उत्तम ऋषिगण जघन्य पात्र कहते दृष्ट्वा जिनं गुरून् जैनान्संतुष्टः स्तौति नौति यः ॥ तमद्विषतं भक्त्यैव जघन्यं पात्रमीरितं ॥ १०१ ॥ __ अर्थ-जो जिनेंद्र, गुरुवोंको तथा जैनबंधुओंको देखकर उनके प्रति द्वेष न करते हुए संतोषसे भक्तिसे उनकी स्तुति करता है व नमन करता है उसे जघन्य पात्र कहा है ॥ १०१ ॥ ___ अपात्र वर्णन. देवगुरुधर्मधार्मिकशास्त्रव्रतविबुधदूषकास्तद्वाचः ॥ ये श्रृण्वंति दयंते सततं तमुशंत्यपात्रमिति विबुधाः॥१०२॥ अर्थ-जो जिनदेव, जिनमुनि, धार्मिक, शास्त्र, जिनोपदिष्टवत, विद्वान् आदिका दूषण करते हैं, उनको एवं जो उनके वचनोंको बहुत संतोष से सुनते हैं व उन दूषकोंको अन्न वस्त्रादिक देकर पोषण करते हैं उनको अपात्र कहते हैं ॥ १०२ ॥ तपोधनं वक्रमित सुवृत्तं कषायिणं दुर्गतिगामिन च ॥ वदंत्यपात्रं मुनयोऽघवृद्धिं करोति यस्तं मनसेव पार्थ ।।१०३॥ अर्थ-जो मुनीश्वर पार्श्वमुनिके समान जानबूझकर अपने चारित्रको मलिन करते हैं, अत्यंत कषायी हैं, नरकादि दुर्गतिको जानेवाले हैं, पापकी वृद्धि करते हैं उन्हें मुनिगण अपात्र कहते हैं ॥ १०३ ॥ धर्मापकारिणो धर्मद्वेषिणो धार्मिकद्विषः॥ कुतर्किणोपि येऽन्योन्यमपात्र ते विदुर्बुधाः ॥ १०४ ॥ अर्थ-जो मनुष्य धर्मकार्यमें विघ्न डालनेवाले हैं। धर्मद्रोही है, व धार्मिकमनुष्यों के साथ द्वेष रखते हैं व परस्परमें कुतर्क करते हैं उनको अपात्र कहते हैं ॥ १०४ ॥ .
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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