SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ दानशासनम् PRAVAAAAAprn/wn.., - अर्थ--- परीषहको जीतने में समर्थ, कोके नाश करनेमें दक्ष, व 'ज्ञानध्यान और तपमें लीन उत्तमपात्र कहलाते हैं ॥ ८ ॥ प्रशांतमनसः सौम्याः प्रशांतकरणक्रियाः प्रशांतारिमहामोहास्ते पात्रं दातुरुत्तमं ॥९॥ अर्थ- शांतचित्तवाले, सौम्यस्वभाववाले, . मनवचनकायकी सरलवृत्ति रखनेवाले, मोहसे रहित साधुजन उत्तमपात्र कहलाते . धृतिभावनया युक्तास्सत्वभावनया युताः । .... ... तत्वार्थाहितचतस्कास्ते पात्रं दातुरुत्तमं ॥ १० ॥ __ अर्थ-धैर्य और सात्विक. भावनावोंसे युक्त, तत्वोंके मननमें जिन्होंने अपना चित्त लगाया है, वे उत्तम पात्र कहलाते हैं ॥१०॥ परीषहजये शूराः शूरा इंद्रियनिग्रहे । कषायविजये शूरास्ते पात्रं दातुरुत्तमं ॥ ११ ॥ अर्थ-परीषहजय, इंद्रियनिग्रह, और कषायोंको जीतने में जो . शूर हैं वे उत्तमपात्र कहलाते हैं ॥ ११ ॥ विमलज्ञानसंपन्ना वर्द्धते साधवोऽनिशं । फलंति नित्यमम्लाना ध्रुवांबुर्भूरुहा यथा ॥ १२ ॥ अर्थ-निर्मल ज्ञानसे युक्त उपर्युक्त प्रकारके गुणोंसे युक्त साधु नित्य अपने गुणोंकर वृद्धि को प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार कि यथेष्ट . जलस्थानमें रहा हुआ वृक्ष नित्यफल देता है ॥ १२ ॥ .. ........ . एकाकी विहारनिषेध. - यो मध्ये यतिनां जितस्मरकषायाणां प्रशांतात्मना । तस्मात्ते मदनादयश्च सकला दोषाः प्रयांति क्षयं ॥ एकाकी सहसा युवा विहरति स्वांगेच्छया यः सुखी। ते तं नंति गिरंति साधुपदवी प्रोदासयंति ध्रुवं ॥ १३॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy