________________
दानशासनम्
चतुर्थोऽध्यायः। दानशाला लक्षण
पृष्ठ श्लोक
२०५ मंगलाचरण व प्रतिज्ञा
१०६ १ २०६ नवीन गृहसंस्कार
१०६ २ २०७ पुराण गृहसंस्कार २०८ सर्वथा आहार वर्जनस्थान
१०७ ४ २०९ मंगलगृह
१०७ ५.७ २१० अप्रशस्त गृह
१०८ ८ २११ गुरुओंके आगमन में सूतकियोंका कर्तव्य १०८ ९.१० २१२ देवगुरुओंके सेव्य वस्तुका नहीं खाना १०८ ११ २१३ गुरुओंके भोजन स्थानकी अशुद्धिका फल १०९ १२ २१४ चाण्डालादिके लिए जैनगृह प्रवेश निषेध १०९ १३.१४ । २१५ पात्रदानके लिए अशुचिगृहमें नहीं ठहरे और उस का फल
११० १५.१० २१६ गृहसंस्कार का विधान ११०-१११ १८-१९ २१७ साधुप्रविष्टगृह में भूतादि की पीडा नहीं होती है .
१११ २०-२१ २१८ सुपात्रागमनसमय में गृह की सजावट करें ११२ २२-२४ २१९ पापी स्त्रियोंकी वृत्ति २२० धर्म के लिए दाता और याचक दोनों नहीं है ११३ २६ २२१ पुण्यवती स्त्रियोंकी वृत्ति
११३ २७ २२२ दानशालाकी पवित्रता
११५-१५ २८-३६ २२३ उपसंहार
इति दानशासविधिः ।