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________________ ११२ दानशासनम् । संपत्ति सदा बढती है । एवं उस घरमें आया हुआ द्रव्य व पुण्य अत्यधिक होकर बढता है ॥ २१ ॥ राजाद्यागमनोत्साहे गृहशोभा च कुर्वते ॥ सुपात्रागमने जैनाः स्वर्गमोक्षसुखप्रदे ॥ २२ ॥ अर्थ-इहलोकमें हमारे रक्षक राजा आदिके आगमन के समय जिस प्रकार प्रजाजन अपने घर की सजावट करते हैं, उसी प्रकार धार्मिक जन स्वर्गमोक्षको प्रदान करनेवाले सुपात्रों के आगमन के समयमें अपने घरकी सजावट वा शोभा करते हैं ॥ २२ ॥ महाय बंधवागमने जनास्तदा । गृहांगणद्वारमतीव शोभनं ॥ धनक्षयायैव च कुर्वतेंहसे । बुधास्सुपात्रागमने न किंचिदाः ॥ २३ ॥ अर्थ-लोकमें विवाहादि कार्यमें जब बंधुवोंका आगमन होता है उस समय सब लोग अपने घर, अंगण आदिको खूब सजाते हैं इतना ही नहीं, अपने शरीरको भी सजाते हैं। परंतु यह सब संसारवृद्धि के लिए कारण है एवं इनसे धनहानिके सिवाय कोई लाभ नहीं है । परंतु खेद है कि लोग अपने घरको सत्पात्रोंके आगमनके समय कुछ भी नहीं करते हैं ॥ २३ ॥ महाय बंधागमने जनास्तदा । गृहांगणद्वारमतीव शोभनम् ॥ वृषं श्रियं लब्धुमयं च सद्गतिं । बुधास्सुपात्रागमने दिवामृते ॥ २४ ।। अर्थ-जिस प्रकार लोग विवाहादि कार्योंके समय बंधुओंके आगमनमें घरके द्वारकी शोभा करते हैं, इस प्रकार सुपात्रोंके आगमनके समयमें धर्म, संपत्ति, आरोग्य व स्वर्गमोक्षादिकको प्राप्त करने के लिए नहीं करते हैं। खेद है।।। २४ ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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