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________________ दानशाला लक्षण को भी गोबर से पवित्र करना चाहिये । ऐसे घर में अर्हत्परमेष्ठी के चरणभक्त व सम्यग्दृष्टी मुनि भोजन करें ॥ ३ ॥ सर्वथा आहारवर्जनस्थान. मिथ्यादृशां च मांसादां गेहे जैनाथये सति । नाद्यात्तत्र नवं कृत्वा शुद्धेऽद्युर्ब्रतिकादयः ॥ ४ ॥ १०७ अर्थ - मिध्यादृष्टि व मद्य, मांस, मधु के सेवकों के द्वारा आश्रित घरमें कोई जैनी रहता हो तो उस घर में जैनमुनि आहार नहीं के सकते हैं । यदि उस घरको नकीन कर पूर्वोक्त प्रकार से होम पुण्याहवाचना आदि संस्कारोंके द्वारा शुद्ध करें तो व्रतिक उसमें आहार ले सकते हैं ॥ ४ ॥ 1 मंगलग्रह. प्रत्यहं गोमयांभोभिः पूर्णसंसिक्तचत्वरं । तद्दृष्टिगोचरं योगिप्रवेशायातिमंगलं ॥ ५ ॥ अर्थ - जिस घर के प्रांगण प्रतिनित्य गोमय के पानीसे सिंचित हुआ दृष्टिगोचर होता हो, वह घर मुनियोंके प्रवेश के लिये अत्यंत मंगल है ॥ ५ ॥ सम्यक्फतिसस्यौघं सुक्षेत्रं वीक्ष्य निस्तृणं । सर्वे शंसंति तं तच्च दातारं मुनयस्तथा ॥६॥ अर्थ - जिस खेत में अच्छे फल व सस्य हो उस खेतको देखकर राहगीर लोग उस खेतकी व उस खेत के मालिक की प्रशंसा करते हैं, ठीक इसी प्रकार उपर्युक्त प्रकार के मंगलगृह व उसके मालिक दाताको सज्जन लोग प्रशंसा करते हैं ॥ ६ ॥ यतिभुक्तिगृहं शस्तं सर्वसंकल्पवर्जितं ॥ यद्गृहं सर्वमखिलं रक्षेत्सर्वप्रयत्नतः ||७|| अर्थ - जिस घर में प्रवेश करनेसे मुनियोंके चित्तमें क्षोभ या अन्य
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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