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चतुर्विधदाननिरूपण
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सततमभयदानानिर्भयो निर्जितारि-। त्रिभुवनजननेन्दीवरानंदचंद्रः । स्वजनमुरमहीजः कामिनीनां मनोजः।..
स भवति परमश्रीकामिनीकांतरूपः ॥ १९९ । अर्थ-सदाकाल अभयदान करनेसे मनुष्य निर्भय बनता है। सर्व शत्रुवोंको जीतनेवाला होता है, तीन लोकके मनुष्योंके नेत्ररूपी नीलकमलको हर्ष उत्पन्न करनेवाले चंद्रमाके समान बन जाता है, स्वबंधु व देवोंके द्वारा भी वह पूज्य व स्त्रियों के लिये कामदेवके समान सुंदररूप बन जाता है। इतना ही नहीं वह इसी अभयदानके फलसे मुक्तिलक्ष्मीका पति बन जाता है ॥ १९९ ॥
दयांबुसिक्तामृतसूर्यतप्ता- । मचौर्यसहोहलशोभमानाम् ॥ सती सुरक्षावृतिकामकांक्षा । हिमालिलक्ष्मी लतिका वहंती ॥ २० ॥ अर्थ--यह अभयदानरूप लता दयाजलसे सींची गई है, मरणका अभाव अर्थात् जीवनरूपी सूर्यसे प्रकाशित हो रही है, चोरी नही करना एतत्स्वरूप दोहदसे वह पुष्ट होगयी है, प्राणियोंका रक्षण करना यही इसकी वृति है-बाड है। तथा निस्पृहतारूपी ठंडे आलबाल की शोभा धारण करती है ॥ २० ॥
शुद्धस्याभयदानस्याहारदानस्य यत्फलम् ॥ शबरः क्षत्रियो भूत्वा लोभदत्तेन चाब्रवीत् ॥ २०१॥ अर्थ-शुद्ध अभयदान व आहारदानके फलसे एक मिल्छ उसी जन्म में मरकर क्षत्रिय हुआ व लोभदत्त नामके व्यक्तिके साथ प्रत्यक्ष बोला । इसलिए अभयदान का फल अचिंत्य है ॥ २०१ ॥