SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दानशासनम् हैं, और दूसरोंको मर्मभेदी गालियोंको देते हैं, उनको उस तीव्र पापके कारण उसी समय नरकादि नीचगतियोंका बंध होता है । एवं उनकी संपत्ति चोर, दुष्टराजा, आदिके द्वारा लुट जाती है, एवं वे सदा दुःखी होते हैं । एवं उनके घर में भयंकर बीमारी फैलती है । एवं इस पापके कारण तीन मासके अंदर मरण भी होजाता है । इसलिए देवगुरुस्थान में पाप न करना चाहिये । जो मनुष्य जिनमंदिर व मुनिवासमें शराब पीते हैं एवं मांस पकाकर खाते हैं ऐसे सेवक, एवं उनको अनुमति देनेवाले राजा व प्रजा सबके सब भ्रष्ट होते हैं, अपने घर व नगरको छोडकर दुष्ट जानवरोंके समान जंगलमें फिरते रहते हैं । इतना ही नहीं वे सब शत्रुराजावोंके द्वारा बाधित, दण्डित, व पीडित होते हैं, सदा बंदीखानेमें रहनेवाले के समान उनको दुःख उठाना पडता है ॥१४९॥१५० शैलूषोऽप्यनयोऽगुणोऽयमशमः क्रोधी जडो धील घुनिर्भाग्योऽयमिति ब्रुवंति सुधियो दृष्ट्वा शपंत नरं । स श्रीमानुदयो गुणी स सुकृती शांतः सशिक्षाऽनघः ॥ सदृष्टिः सुदृगग्रणीस्स विबुधः श्रीजैनभक्तो भवेत् ॥१५१ अर्थ-गुणदोष को जाननेवाले विद्वान लोग योग्यायोग्य पात्रभेद को न जानकर गालियां देनेवाले मनुष्य को डोंबारी कहते हैं । यह निर्गुण है, अशांत है, घुस्सेबाज है, मूर्ख है, पापी है, नीच है, दरिद्री है इत्यादि अनेक प्रकार से कहते हैं । परंतु जो जिनभक्त हैं उन को यह श्रीमंत है, भाग्यवान है, गुणनिधान है, पुण्यात्मा है, शांत है, शिक्षित है, निष्पाप है, सम्यग्दृष्टि है, सम्यग्दृष्टियोंके अग्रणी है, विद्वान है इत्यादि प्रकार से प्रशंसा करते हैं ।। १५१ ॥ सस्वेदान्कुब्जकंठानचलितचरणान्दग्धशीर्षानशक्ताबक्ताक्षान्कंपितांगाश्वयथुयुतमुखान्भारवाहान्समीक्ष्य
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy