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________________ हस्तरिश्क १ ७ || लक्ष्मी नमामात्मने। कस्तूरी करूशक रवः स्मरस कल्याणमसेवनेवनश्यो जा मोर्वसन् ॥ शादार देवीवरविज्ञ विज्ञयत यः का मदिरा मोहरसीरुहामिव मरुत्तरैः मांधा मृत माशेोः सतां वसतिदेतसि निश्चय खरीकृते॥३॥ सौरपादिवरून मोदनमिव स्वाद व वाडी राजिवादि ९५२ सोऽर्व्याधिरो मंदि तो यैरेव योन दो नवति श्री रेनी रं सरः पादै दरस र ज्योतिर्मलिः सन्तनः श्रयैरेवनदेत |ति कर्माचेमजन्मनियैः सुते ते आई जोडन एरा अशोक रेव्हालाह सोचैः त्रिशिरेचंदन रसे तैरात्म प्रेता डडे कुशी
SR No.022011
Book TitleKasturi Prakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyapalsuri
PublisherParshwabhyuday Prakashan
Publication Year2013
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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