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________________ ..अहवा जिठं अंकं, आई काऊण मुत्तु ठवियं के। पंतिसु अंतिमाइसु, हिटिमकोठाउ गणियव्वं ॥२२॥ व्याख्या-यथा प्राक् नष्टोद्दिष्टविधौ पश्चानुपूर्व्याऽत्यादिपंक्तिषु येऽका: पूर्व स्थापिता: स्युस्ते गतांके षु न गण्यन्ते, तथा ऽत्राऽपि तान्मुक्त्वा लघु लघुमंकमादौ कृत्वोपरितनकोष्टकाद् गणनीयम् पश्चानुपूर्व्या नवाऽष्टसप्तषट्पंचचतुरादिभिरकै: कोष्टका अंकनीया इत्यर्थः, अथवा ज्येष्टमंकमादिकृत्वाऽधस्तन कोष्टकाद् गणनीयं पूर्व्यानुपूर्व्या एकद्वित्रिचतु:पंचादिभिरकै: कोष्टका अंकनीया इत्यर्थ: नष्टाद्यानयनेऽयमर्थ: स्यष्टो भावी। अथ नष्टानयनमाहपइपंती एग कोठय, अंकगाहणेण जेहिं जेहिं सिया। मूलगंकजुएहिं, नळू को ते सुखविअक्खे ॥२३॥ अक्ख ठाणसमाइं, पंतीसु तासु नठुरुवाई। ने आई सुन्न कोठय, संखा सरिसाइं से सासु ॥२४॥ ७२० . ५०४० १४४० १००८० १५१२० २८८० २०१६० ३६०० | २५२०० ४३२० ३०२४० ३५२८० ४०३२० ८०६४० १२०९६० १६१२८० २०१६०० २४१९२० २८२२४० ३२२५६०
SR No.022005
Book TitleAngul Sittari Ane Swopagna Namaskar Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri, Jinkirtisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages54
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size7 MB
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