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________________ पाँचवाँ गुणस्थान. (५१) सकी है, श्रमण नाम साधुका है, अतः साधुके समान सिर मुंडक मुंडा करके किन्तु सिरपर चोठी जरूर रक्खे, हाथमें पात्र लेकर अपने स्वजन संबन्धि कुटुंबियोंमेंसे आधाकाँ आदि दोषोंसे रहित शुद्धमान आहारपानी ग्रहण करे, किन्तु साधु लोगोंके समान धर्मलाभ आशीर्वाद न दे। ये पूर्वोक्त श्रावककी ग्यारह प्रतिमा पाँच वर्ष और छ: मासमें पूर्ण होती हैं । पूर्वमें कथन किये हुए छः कृत्य, बारह व्रत और ग्यारह प्रतिमा वगैरह नियमोंको धारण करनेवाला पंचम गुणस्थानी श्रावक सर्वविरतिके योग्य होता है । इस देशविरति पाँचवें गुणस्थानमें रहा हुआ जीव अप्रत्याख्यानीय चार कषाय, मनुष्यत्रिक, वज्रऋषभनाराच संहनन, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, इन दश कर्म प्रकृतियोंके बन्धका अभाव होनेसे ६७ सड़सठ प्रकृतियोंका बन्ध करता है। अप्रत्याख्यानीय चार कषाय, मनुष्य अनुपूर्वी, तियेच अनुपूर्वी, नरकत्रिक, देवत्रिक, वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, दुर्भग नामकर्म, अनादेय नामकर्म और अपयश नामकर्म, इन १७ सतरह कर्म प्रकृतियोंका अभाव होनेसे इस गुणस्थानवाला जीव ८७ सतासी प्रकृतियोंको वेदता है और १३८ एकसौ अड़तीस कर्म प्रकृतियोंको सत्तामें रखता है। ॥ पाँचवाँ गुणस्थान समाप्त ॥
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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