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________________ बारहवाँ गुणस्थान. (१४७) क्षपक योगी ग्यारहवें गुणस्थानमें प्रवेश नहीं करता ग्रन्थकार अब इसी विषयमें कहते हैंएकादशं गुणस्थानं, क्षपकस्य न संभवेत् । किन्तु सूक्ष्मलोभांशान्, क्षपयन् द्वादशं व्रजेत् ॥७३॥ ___ श्लोकार्थ-क्षपक योगीको एकादशवाँ गुणस्थान संभवित नहीं, किन्तु वह सूक्ष्म लोभांशोंको खपाता हुआ द्वादशवें गुण स्थानमें चला जाता है। ___ व्याख्या-ग्यारहवाँ गुणस्थान क्षपक महात्माको नहीं होता, क्योंकि ग्यारहवें गुणस्थानमें नीचे पड़ने वाला ही महात्मा जाता है। जिस प्रकार एक उच्च मकान पर चढ़नेके लिए एक चौदह डंडों वाली सीढ़ी हो और क्रमसे उस सीढ़ीके चौदह डंडोंको आरोहण करते हुए मकान पर चढ़ जाते हैं, उसी प्रकार इस आत्मीय गुणावली रूप सीढ़ीमें आत्मीय गुण रूप चौदह डंडे हैं, इस आत्मीय गुणावली सीढ़ीमें लगे हुए आत्मीय चतुर्दश गुण रूप डंडोंको क्रमसे आरोहण करते हुए प्राणी मोक्ष रूप म. कान पर चढ़ सकते हैं अन्यथा नहीं। जिस तरह पूर्वोक्त सीढ़ीका ग्यारहवाँ डंडा कमजोर हो और क्रमसे चढ़ने वाला मनुष्य उस पर पैर रखते ही नीचे गिर जाता है, वैसे ही पूर्वोक्त गुणावली सीढ़ीका ग्यारवाँ गुणस्थान रूप डंडा ऐसा ही कमजोर है कि चढ़ने वाला अवश्यमेव उस गुणस्थानसे नीचे गिरता है, इसलिए क्षपक महात्माको तो उसी भवमें मोक्ष प्राप्त करना है, वह ग्यारहवें गुणस्थानमें न जाकर बारहवें गुणस्थानमें जाता है । इतना और भी समझ लेना चाहिये कि प्रथमके गुणस्थानोंसे ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त क्रमसे उपशम श्रेणीवाला ही महात्मा चढ़ता है, इस लिए उपशम श्रेणीवाला ही महात्मा नीचे गिरता है। क्षपक महा
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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