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________________ आठवाँ गुणस्थान. (१२७). चारित्र औपशमिक ही होता है तथा भाव भी: उपशमात्मक ही होता है। - व्याख्या-उपशान्त मोह गुणस्थानमें दर्शन चारित्र मोहनीयकी उपशमता होनेसे सम्यत्तव और चारित्र औपशमिक ही होता है और भाव भी औपशमिक ही होता है, किन्तु क्षायिक या क्षायोपशमिक नहीं होता । जीवको बारहवें गुणस्थानके अ. न्तिम भागमें मोक्षके निदानभूत कैवल्य ज्ञानकी प्राप्ति होती है, परन्तु कर्मकी ऐसी विचित्र लीला है, कि बारहवें गुणस्थानके नजीकमें गया हुआ, अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थान तक चढ़कर भी जीव एक मोहनीय कर्मके प्रभावसे नीचे गिर पड़ता है। ___ ग्यारहवें गुणस्थानसे किस प्रकार योगी नीचे पड़ता है सो कहते हैंवृत्तमोहोदयं प्राप्योपशमी व्यवते ततः। अधः कृतमलं तोयं, पुनर्मालिन्यमभुते ।। ४४ ॥ श्लोकार्थ-जिस तरह नीचे मल दबा हुआ पानी निमित्त पाकर मलीनताको प्राप्त हो जाता है, वैसे ही वृत्त मोहके उदयको प्राप्त करके उपशमी पूर्वोक्त गुणस्थानसे च्युत होता है। व्याख्या-जिस प्रकार किसी एक पानीके कुण्डमें नीचे कीचड़ भरा हुआ हो और ऊपर स्वच्छ पानी होता है, किन्तु किसी निमित्तके मिलने पर वह स्वच्छ भी पानी मलीनताको प्राप्त हो जाता है, बस वैसे ही उपशमी महात्मा भी चारित्र मोहनीय कर्मके उदय भावको प्राप्त करके ग्यारहवें गुणस्थानसे नीचे गिरता है। आठों काँमें शास्त्रकारोंने मोहनीय कर्म सबसे प्रबल बताया है सो सत्य ही है, क्योंकि ग्यारहवें गुणस्थान तक चढ़कर भी
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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