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________________ प्रस्तावना. आधुनिक भव्यात्माओंके उपकारार्थ भिन्न भिन्न प्रकारसे ग्रन्थोंको रच कर वीतराग वचनको सुबोध कर दिया है। समयकी निर्ब लतासे जीवोंकी बुद्धिमें भी निर्बलता हो गई है। जिससे पूर्वर्षि प्रणीत संस्कृत प्राकृतबद्ध (वीतराग वचनदर्शक) ग्रन्थोंको अवलोकन नहीं कर सकते हैं और वीतराग तत्त्वसें अनभिज्ञ रहकर प्रभु मार्ग से पराङ्गमुख हो जाते हैं। ऐसे जीवोंके सुबोधार्थ इस गुणस्थानक्रमारोहका कि जो ग्रन्थ पूर्वाचार्यने संस्कृतम रचा है उसका हिन्दी अनुवाद करके जन समक्ष रखा गया है । यद्यपि यह गुणस्थानका विषय बहुत गहन है । आत्माका निज गुण प्राप्त करनेका क्रम विशेषज्ञ अथवा अनुभव ज्ञानीके विना अन्य साधारण व्यक्ति याथातथ्य प्रतिपादन नहीं कर सकता है। तथापि पूर्वाचार्यके मार्गमें रह कर उन्हींके ही शब्दोंको हिन्दी भाषामें परिवर्तन किये हैं। प्रसंगवश चार ध्यान, श्राद्ध के द्वादश व्रत, क्षपक तथा उपशम श्रेणी इत्यादि बातोंका स्वरूप स्फुट करके दिखलाया गया है । यह भी मनःकल्पित नहीं किन्तु अन्य अन्य आचार्योंकी कृतिके अनुसार ही लिखा गया है । इस लिए वाचकटंदसे सविनय प्रार्थना है कि इस गहन विषयको पढ़ते हुए इस अनुवादमें कुछ त्रुटी दृष्टिगोचर हो तो आप सुधार लेवें और अनुवादकको सूचित करें ताकि आगामी आवृत्तिमें उस त्रुटीको लक्ष्यमें रखकर मुद्रित किया जाय । अंतमें श्री वीतराग वचनसें एक अक्षर मात्र भी इस अनुवादमें विरोध आता हो तो उसके लिए मिथ्या दूष्कृत देता हूआ विराम लेता हूँ। जैन शाला, जामनगर. . ! मुनि कस्तूरविजय. . १९७५-आषाढ सुदी जैनभीक्षु. तृतीया-सोमवार. )
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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