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________________ छठा गुणस्थान. ( ९७ ) और उसमें एक एक प्राणीके साथ अनन्त कर्म वर्गणा लगी हुई हैं, इसी तरह एक एक वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श वगैरह पर्यायोंका अनन्त विस्तार हो सकता है। ऐसे गहन विषयक विपाक विचय नामक धर्म ध्यानके तीसरे पायेका धर्म ध्यानीको यथाशक्ति चिन्तवन करना चाहिये, क्योंकि इसका चिन्तवन करनेसे मनुष्य कर्मीकी विचित्रतासे परिचित होता है और कर्मोंका स्वरूप समझ कर मनुष्य कर्म बन्धसे बच कर पूर्वसंचित कर्म समूहको ज्ञान ध्यानानलसे नष्ट करके अनन्त शाश्वत सुखका भोगी बनता है। ___ धर्म ध्यानका चतुर्थ पाया संस्थान विचय नामक है। संस्थानका अर्थ आकृति और विचयका मायना विचार होता है, अर्थात् जिसमें जगतके समस्त पदार्थ स्थित हैं, उसकी आकृतिका विचार करना । उसकी कैसी आकृति है और किन किन स्थानौमे किन किन पदार्थों की किस किस स्वरूपमें स्थिति है, इत्यादिका विचार-चिन्तवन करना, उसे संस्थान विचय नामक वर्म ध्यान कहते हैं । अनन्त आकाश रूप एक विशाल विस्तीर्ण क्षेत्र है । उस विस्तीर्ण क्षेत्रका अन्त ही नहीं है, उस अनन्त आकाश रूप विशाल क्षेत्रको अलोक कहते हैं । उस अलोकके मध्य भागमें ३४३ राज घनाकार लंबी चौड़ी जगहमें जीव अजीव रूपी अरूपी पदार्थरूप एक पिण्ड है, उसे लोक कहते हैं । यह लोक सातवीं नरककी अन्तिम तह पर सात राज लंबा चौड़ा है और वहाँसे ऊचाईमें जब सात राज ऊपर आते हैं तब एक राज लंबा चौड़ा रहता है, वहाँ पर मध्यलोक नामक लोक आता है। जिसमें मनुष्य तथा पशुओंके जन्म मरण होते हैं, उसे मध्यलोक कहते हैं। यह मध्यलोक एक राज विस्तीर्ण है, इसमें असंख्य द्वीप समुद्र हैं । अब मध्यलोकसे ऊपर चलिये, मध्य लोकसे जब ૧૩
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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