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________________ छठा गुणस्थान. ( ९३ ) किसी पुण्यके प्रभावसे कदाचित् प्राप्त भी करलें तो वे फिर काणे या अन्धे अथवा और भी कई प्रकारके आँखों के रोगवाले हो जाते हैं । इससे विपरीत साधु साध्वी या अभ्य किसी धर्मष्ट मनुष्य तथा प्रभुकी प्रतिमाके दर्शन करके आनन्द मनाता हो, हृदयमें वैराग्य भाव पैदा करानेवाले शास्त्रोंका अवलोकन करता हो, तो वह प्राणी विशाल दृष्टिवाले नेत्र प्राप्त करता है, उसकी चक्षुरिन्द्रियमें प्रबल शक्ति और निरोगता रहती है । जो प्राणी अतर, तेल, फुलेल, मोगरा, केवड़ा वगैरह सुगन्धित पदार्थों में मस्त रहता है और दुर्गन्धित पदार्थोंके ऊपर द्वेष धारण करता है, नकटे गूंगे नाक हीन मनुष्यों को देख कर उनकी हँसी मस्करी उड़ाकर खुश होता है, वह प्राणी भवान्तरमें नासिका इन्द्रियकी हीनता प्राप्त करता है, यदि किसी सुकृतके प्रभाव से उसे नासिका प्राप्त भी हो जाय तो वह अनेक प्रकारके रोगों से गल सड़ जाती है । पूर्वोक्त कृत्योंसे विपरीत - नकटे गूंगे नाक हीन प्राणियोंको देख कर उन पर करुणा भाव धारण करे, यथाशक्ति उन्हें मदद पहुँचावे, तो वह प्राणी भवान्तरमै सुन्दर नासिका प्राप्त करता है और उसकी नासिका - शक्ति प्रबल होती है तथा सर्व प्रकारसे उसकी नासिकाइन्द्रिय निरोग रहती है । जो प्राणी मांस वगैरह अभक्ष पदार्थोंका भक्षण करता है, मदिरा वगैरह अपेय पदार्थोंका पान करता है और रात दिन उन पदार्थों के आस्वादमें लोलुप होकर आनन्द मनाता है, जीभके स्वाद के लिए अनेक प्रकारकी अनन्तकाय और प्रत्येक वनस्पतिका आरंभ समारंभ करता है, लोकमें हिंसा वर्धक उपदेश देता है, दूसरे प्राणियोंको मार्मिक वाक्य बोल कर उनके दिलको दुखाता है या किसीकी असत्य निन्दा चुगली करके उन्हें त्रास पहुँचाता है, देव
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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