SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Arachana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailashsagarsun Gyanmandir हेउजुत्तमलंकियी उवणीयं सोश्यारं च, भियं महरमेव य॥१॥ समं अद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जी तिणि वित्तपयाराणि, चउत्थं नोवलब्बइ॥२॥ सकया पायया चेव, भणिईओ होति दोण्णि वा। सरमंडलंमि गिजते, पसत्था इसिभासिया॥३॥ केसी गायइ महुरं केसी गायइ खरं च रुक्खं ची केसी गायइ चरं केसी य विलंबियं दुतं केसी?॥४॥ विस्सरं पुण केरिसी?। गोरी गायति महुरं सामा गायइ खरं च रुक्खं चीकाली गायइ चरं काणा य विलंबियं दुतं मंदा॥५॥ विस्सरं पुण पिंगला। सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा इकवीसई ताणा एगूणपण्णासं, समत्तं सरमंडलं॥६॥ से तं सत्तनाम।१२७) से किं तं अट्ठनामे?, २ अट्ठविहा वयणविभत्ती पं० २०-निद्देसे पढमा होइ, बितिया उवएसणे। तइया करणमि कया, चउत्थी संपयावणे॥७॥ पंचमी य अवायाणे, छट्ठी सस्सामिवायणे। सत्तमी सण्णिहाणत्थे, अट्ठमाऽऽमंतणी भवे॥८॥ तत्य पढमा विभत्ती निद्देसे सो इमो अहं वत्ति। बिझ्या पुण उबएसे भण कुणसु इमं व तं वत्ति॥९॥ तइआ करणंमि कया भणियं च कयं च तेण व मए वा। हंदि णमो साहाए हवइ चउत्थी पयामि ॥ अवणय गिण्ह य एत्तो इउत्ति वा पंचमी अवायाणे। छट्ठी तस्स इभस्स व गयस्स वा सामिसंबंधे॥१॥ हवइ पुण सत्तमी तं इमान आहारकालभावे यो आमंतणी भवे अहमी 3 जहा हे जुवाणतिर॥ से तं अट्ठणाम।१२८१ से किं तं नवनामे?, २ णव कव्वरसा पं० नं०-वीरो सिंगारो अन्धुओ य रोदो य होइ बोद्धव्यो वेलणओ बीभच्छो हासो कलुणो पसतो य॥३॥ तत्य परिच्चायंमि यतवचरणे सत्तुयणविणासे योअणणुसयधितिपरकमलिंगो वीरो रसो होइ४॥ ॥ श्री अनुयोगद्वारसूत्र पू. सागरजी म. संशोषिता For Private And Personal
SR No.021047
Book TitleAgam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages123
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy