SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuni Gyanmandir |अप्फु( संपण्णे, सुरूवे पियदंसणे॥४॥ तस्स रूववई भज, पिया आणेइ रूविणि पासाए कीलए रम्भे, देवो दोगुंदगो जहा॥५॥ अह अन्नया कयाई, पासायालोअणे ठिओ। वन्झमंडणसोभागं, वझं पासइ बझग६॥ तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी। अहो असुहाण कमाणं, निजाणं पावगं इम॥७॥ संबुद्धो सो तहिं भयवं, पमं संवेगमागओ। आपुच्छऽम्मापियो, पव्वए अणगारिय॥८॥ जहिज्ज सग्गंथ (तु संगं च) महाकिलेसं, महंतमोहं कसिणं भयाणगी परियायधम्म चभिरोअइज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य॥९॥अहिंस सच्चं च अतेणगंच, तत्तो अबंभ ( अब्बभ) अपरिह'गह चोपडिवजिया पंच महव्वयाणि, चरिज धम्मं जिणदेसियं विऊ ॥७७०॥ सव्वेहि भूएहिं दयाणुकंपी, खंतिक्खमे संजयबंभयारी। सावजजोगे परिवजयंतो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइंदिए॥१॥ कालेण कालं विहरिज रहे, बलाबलं जाणिय अपणो यो सीहोव सद्देण न संतसिज्जा, वइजोग |सुच्चा न असब्भमाहू॥२॥ उवेहमाणो ३ परिव्वइज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइजा। न सव्व सव्वत्थ भरोअइज्जा, न यावि पूयं गरिहं च संजए॥३॥अणेगछंदामिह माणवेहिं, जे भावओ से परेइ भिक्खू भयभेरवा तत्थ उई(३)ति भीमा, दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छ।॥४॥ परीसहा दुविसही अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा॥ से तत्थ पत्ते न वहिज्ज पंडिए, संगामसीसेइव नागराया॥५॥ सीओसिणा दंसमसगा य फासा, आयंका विविहा फुसंति देह। अकुकुओ( अकक्करे तत्थाहियासइजा, रयाई खविज पुराकडाई॥६॥ पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणे। मेरुव्व वारण अकंपमाणे, परीसहे आयगुत्ते ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal
SR No.021045
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy