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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir दुहिले, थद्धे लुद्धे अनिगहे।असंविभागी अचियत्ते, अविणीएत्ति वुच्चइ॥५॥अह पन्नरसहिं ठाणेहि, सुविणीएत्ति वुच्चकोनीयावित्ती|| अचवले, अमाई अकुऊहले॥६॥ अयं च अहिक्खिवति, पबंधं च ण कुव्वइ। मित्तिज्जमाणो भजति, सुयं लधुं न मज्जति॥ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुष्पति। अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासइ॥८॥ कलहडमरवज्जए, बुद्धे (अ) अभिआइए। हिरिमं पडिसंलीणो, सुविणीएत्ति वुच्चइ॥९॥ वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवी पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लधुमरिहति॥३४०॥ जहा संखंमि पयं निहियं, दुहओवि विरायइ। एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं॥१॥ जहा से कंबोयाणं, आइन्ने कथए सिया।आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए॥२॥जहाऽऽइन्नसमारुढे, सूरे दढप्ररक्कमोउमओ नंदिघोसेणं, एवं०॥३॥ जहा करेणुपरिकिण्णे, कुंजरे सहिहायणे। बलवंते अपडिहए, ॥४॥ जहा से तिक्खसिंगे, जायक्खंधे विरांयही वसभे| जूहाहिवती,०॥५॥ जहा से तिक्खदाढे, ओदग्गे दुष्पहंसए। सीहे मियाण पवरे,०॥६॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्रगदाधरे। अप्पडिहयबले जोहे, ॥७॥ जहा से चाउरते, चक्कवट्टी महिड्ढिए। चोइसरयणाहिवई,०॥८॥ जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरंदरे। सक्के देवाहिवई,०॥९॥ जहा से तिमिरविद्धंसे, उत्तिटुंति दिवागरे। जलंते इव तेएणं,०॥३५०॥ जहा से उडुवई चंदे, नक्खत्तपरिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णिमासीए,०॥१॥ जहा से सामाइयाण( सामाइयंगाणं), कोडागारे सुरक्खिए। नाणाधण्णपडिप्पुण्णे,०॥२॥जहा सा दुमाण पवरा, जिंबूनाम सुदंसणा।अणाढियस्स देवस्स,०॥३॥जहा सा नईण पवरा, सलिला ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal
SR No.021045
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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