SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir एएसिं वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठगणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥६॥ दुविहा आउजीवा उ, सुहमा बायरा तहा।|| पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥७॥ बायरा जे उपजत्ता, पंचहा ते पकित्तिया। सुद्धोदए य उस्से य, हरयणू महिया हिमे ॥८॥ एगविहमनाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया । सुहमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बाय ॥ ॥ ९ ॥ संतई० ॥ १४६० ॥ सत्तेव सहस्साईं, वासाणुकोसिया भवे । आउठिई आऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१॥ असंखकालमुकोसा ॥ कांयठिई आऊणं० ॥२॥ अनंतकालमुक्कोसं० । विजढंमि सए काए, आउजीवाण अंतरं ॥ ३ ॥ एएसिं वनओ० ॥४॥ दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपजत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥ ५ ॥ बायरा जे 3 पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया । साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य॥६॥ पत्तेयसरीरा उ, णेगहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लगया वल्ली तथा तहा ॥७॥ वलय पव्वया कुहणा, जलरुहा ओसही तिणा । हरियकाया उ बोद्धव्वा, पत्तेया इति आहिया ॥८॥ साहारणसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य॥९॥ हिरिली सिरिली सिस्सिरीली, जावई केय कंदली । पलंडुल्हसुण कंदे य, कंदली य कुहव्वये ॥१४७० ॥ लोही णीहू य थीहू य, तुहगा य तहेव या कण्हे य वज्जकंदे य, कंदे सूरण तहा ॥१॥ अस्सकन्नी य बोद्धव्वा, सीहकन्नी तहेव यो मुसुंढी य हलिद्दा य, णेगहा एवमायओ ॥२॥ एगविहमणाणत्ता० ॥३॥ संतई पप्पऽणाईआ०॥४॥ दस चेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे। वणस्सईणं आऊं तु अंतोमुहुत्तं जहन्त्र्यं ॥ ५ ॥ अनंतकाल० । कायठिई पणगाणं० ॥६॥ असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित www.kobatirth.org १०४ For Private And Personal
SR No.021045
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy