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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उक्कोसेणं वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स, अंतमुहुत्तं जहन्निया ॥८ ॥ उदहीसरिसनामाणं, वीसई कोडिकोडिओ। नामगोआण उक्कोसा, अन्तमुहुत्ता जहन्निया ॥९॥ सिद्धाणणंतभागो, अणुभागा हवंति । सव्र्व्वसुवि पएसग्गं, सव्वजीवेसु (स) इच्छियं ॥१२९० ॥ तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभागे वियाणिया । एएसिं संवरे चेव, खवणे य जए बुहे ॥ १ ॥ त्ति बेमि, कम्मपयडी ३३ ॥ www.kobatirth.ong सज्झणं पवक्खामि, आणुपुव्वि जहक्कम। छण्हंपि कम्मलेसाणं, अणुभावे सुणेहि मे ॥ २ ॥ नामाई वण्णरसगंधफासपरिणामलक्खणं ठाणंी ठिई गई च आउं, लेसाणं तु सुणेह मे ॥३॥ किव्हा नीला य काऊ य, तेऊ पहा तहेव यो सुक्का लेसा य छट्टा 3, नामाई तु जहक्कमं ॥४॥ जीमूतनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसंनिभा । खंजंजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ ॥ ५ ॥ नीला सोगसंकासा, चासपिच्छ समप्पभा। वेरु लियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ॥६॥ अयसीपुष्पसंकासा, कोइलच्छदसंनिभा पारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ ॥७॥ हिंगुलुयधाउसंकासा, तरुणाइच्चसंनिभा। सुयतुंड पईवनिभा, तेउलेसा उवण्णओ ॥८ ॥ हरियाल भेयसंकासा, हलिद्दाभेदसंनिभा । सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ ॥९॥ संखंककुंदसंकासा, खीरधारसमप्पभा। रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ॥१३०० ॥ जह कड्डुयतुंबयरसो निंबरसो कड्डयरोहिणिरसो वा । इत्तोवि अनंतगुणो रसो उ किण्हाइ नायव्वो ॥१॥ जह तिकडुयस्स रसो तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । इत्तोवि० नीलाइ० ॥२॥ जह तरुणअंबयरसो तुयरकवित्थस्स वावि जारिसओ २० काऊइ० ॥ ३ ॥ जह परिणयंबगरसो पक्ककवित्थस्स वावि जारिसओ |० तेऊइ० ॥४॥ ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ९४ For Private And Personal
SR No.021045
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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