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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | बिंबाई परिणभंति तब्भावी लवणागराइसु जहा वह कुसीलसंसग्गी ॥५॥ जीवो अणाइनिहणो तब्भावणभाविओ य संसारे। खियं सो भाविजइ मेलणदोसाणुभावेणं॥६॥ जह नाम महरसलिलं सागरसलिलं कमेण संपत्तो पावइ लोणियभावं मेलणदोसाणुभावेणं॥७॥ एवं खुसीलमंतो असीलमंतेहिं मेलिओ संतोपावइ गुणपरिहाणी मेलणदोसाणु भावेणं॥८॥णाणस्स दसणस्स य चरणस्स य जत्थ होइ उवघातो। वजेजऽवजभीरू अणाययणवजओ खिय॥९॥ जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। मूलगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि ॥७८०॥ जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। उत्तरगुणपडिसेवी, अणायतणं तं वियाणाहि ॥१॥ जत्थ साहम्भिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। लिंगवेसपडिच्छन्ना, अणायतणं तं वियाणाहि॥२॥ आययणंपिय दुविहं दव्वे भावे य होइ नायव्वीदव्वंमि जिणघाई भावंमिय होइ तिविहं तु॥३॥ जत्थ साहम्मिया बहवे, सीलमंता बहुस्सुया चरित्तायारसंपन्ना, आययणं तं वियाणाहि॥४॥ सुंदरजणसंसगी सीलदरिदपि कुणइ सीलड्ढं।जह मेरुगिरीजायंतणंपि कणगत्तणमुवेइ ॥५॥ एवं खलु आययणं निसेवमाणस्स हुज्ज साहुस्सा कंटगपहे व छलणा रागहोसे समासज्ज ॥६॥ पडिसेवणा य दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे यो मूलगुणे छट्ठाणा उत्तरगुणि होइ तिगमाई॥७॥ हिंसाऽलिय चोरिके मेहुन्न परिग्गहे य निसिभत्ते। इय छट्ठाणा मूले उग्गमदोसा य इयरंमि॥८॥पडिसेवणा मइलणा भंगो य विराहणाय खलणा योउवधाओ य असोही सबलीकरणं च एगट्ठ॥९॥छट्ठाणा तिगठाणा एगतरे दोसु वावि छलिएणी कायव्वा 3 विसोही सुद्धा दुक्खक्खयढाए॥७९०॥ आलोयणा ॥श्री ओपनियुक्तिसूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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