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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पढम निहोस दोसु जयणाए। नवरं पुण णाणत्तं भावासनाए वोसिरणं ॥९॥ अणावायमसंलोयं अणवायालोय ततिय विवरीयो आवातं संलोगं पुव्युत्ता थंडिला चउरो ॥३०८॥ भा०अणावायमसंलोगं निहोस बितियचरिम जयणाए। पउरदवकुरुकुयादी पत्तेयं मत्तगो चेव १६२०॥ तइएवि य जयणाए नाणत्तं नवरि सहकरणमि। भावासत्राए पुण नाणत्तमिणं सुणसु वोच्छं ॥१॥ जदि पढमन तरेजा तो वितियं तस्स असइए तइयो तस्स असई चउत्थे गामे दारे य रत्थाए ॥२॥साही पुरोहडे वा उवस्सए मत्तगंमि वाणिसिरे अच्चुकडंमि वेगे मंडलिपासंमि वोसिरह ॥३॥ तिण्णि सल्ला महाराय!, अस्सि देहे पइडिया। वायमुत्तपुरीसाणं, पत्तवेग न पारए॥४॥ राया विजमि मए विजसुयं भणइ किंच ते अहियं?। अहियंति वायकम्मे विजे हसणा य परिकहणा॥५॥ एसा परिवणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता। सामायारी एत्तो वुच्छं अपक्खरमहत्या ॥ सनातो आगतो चरमपोरिसिं जाणिऊण ओगाढ़ी पडिलेहणमप्पत्तं नाऊण करेइ सझाय॥७॥ पुबुद्धिो य विही इहपि पडिलेहणाइ सो चेवाजं एत्थं नाणत्तं तमहं वुच्छं समासेणं॥८॥ पडिलेहगा ३ दुविहा भत्तट्ठियएयरा य नायव्या। दोण्हविय आइपडिलेहणा 3 मुहणंतग सकाय॥९॥ तत्तो गुरू परित्रा गिलाणसेहाति जे अभत्तही। संदिसह पाय मत्ते य अपणो पट्टगं चरिम॥३०॥ पट्टग मत्तय सयमोग्गहो य गुरुमाइया अणुनवणा। तो सेस पायवत्थे पाउँछणगं च भत्तही॥१॥ जस्स जहा पडिलेहा होइ कया सो तहा पढइ साहू। परियट्टे व पयओ करेइ वा अनवावा ॥२॥ भागवसेसाए चरिमाए पडिकमित्तु कालस्सोउच्चारे पासवणे गणे चवीसई पेहे ॥३॥ अहियासिया ॥श्रीओपनियुक्तिसूत्र।। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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