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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassa garsuri Gyanmandir | गिव्हंति ॥६॥ दाऊण बितियकप्पं बहिया मन्झटिआ उ दवहारी । तो देति तइयकप्पं दोण्हं दोण्हं तु आयमणं ॥७॥ होज्ज सिआ उद्धरियं तत्थ य आयं बिलाइणो हुज्जा । पडिदंसिअ संदिट्ठो वाहरइ तओ चउत्थाई ॥८॥ मोहचिगिच्छ विगिटुं गिलाण अत्तट्टियं च मोत्तूणी सेसे गंतुं भणई आयरिआ वाहरंति तुमं ॥९॥ अपडिहणतो आगंतुं वंदिउँ भणइ सो 3 आयरिए। संदिसह भुंज जं सरति तत्तियं सेस तस्सेव ॥५९०॥ अभणंतस्स 3 तस्सेव सेसओ होइ सो विवेगो 3 भणिओ तस्स 3 गुरुणा एसुवएसो पवयणस्म ॥१॥ भुत्तंभि पढमकप्पं करेमि तस्सेव देति तं पायं । जावतिअंति अभणिए तस्सेव विगिंचणे सेसं ॥२॥ विहिगहिअं विहिभुत्तं अइरेगं भत्तपाण भोत्तव्वी विहिगहिए विहिभुत्ते एत्थ य चउरो भवे भंगा ॥३॥ उग्गमदोसाइजलं अहवा बीयं जहिं जहापडिओ इय एसो गहणविही असुद्धपच्छायणे अविही ॥२९५॥ भा० कागसियालक्खइयं दविअसं सव्वओ परामर्ल्डो एसो 3 भवे अविही जहगहिअं भोयणमि विही ॥४॥ उच्चिणइ व विट्ठाओ काओ अहवावि विक्खिरइ सव्वी विष्पेक्खइ य दिसाओ सियालो अनोनहिं गिण्हे ॥६॥ भा०। सुरही दोच्चंगट्ठा छोढूण दवं तु पियइ दवियरसं । हेटोवरि आमटुं इय एसो भुंजणे अविही ॥७॥जह गहिअंतह नीयं गहणविही भोयणे विही इणमो। उक्कोसमणुकोसं समकयरसं तु भुंजेज्जा॥८॥ तइएवि अविहिगहिअं विहिभुत्तं तं गुरुहिऽणुन्नायी सेसा नाणु-नाया गहणे दत्ते य निज्जुहणा ॥९॥ अहवावि अकरणाए उवट्ठियं जाणिऊण कल्लाणं घट्टे दिति गुरू पसंगविणिवारणट्ठाए ॥३००॥ घासेसणा य एसा कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता संजमतवड्ढगाणं निग्गंधाणं ||श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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