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लुद्धस्सा बहुमोहस्स भगवया संसारोऽणंतओ भणिओ॥६॥जो जह व तह व लद्धं गिण्हइ आहारउवहिमाईयो समणगुणमुक्कजोगी संसारपवड्ढओ भणिओ॥७॥ एसणमणेसणं वा कह ते नाहिंति जिणवरमयं वा कुरिणमिव पोयाला जे मुक्का पव्वइयमेत्ता?॥८॥ गच्छंमि केइ पुरिसा सउणी जह पंजरंतरनिरुद्धा। सारणवारणचइया पासत्थगया पविहरंति॥९॥ तिविहोवधायमेयं परिहरमाणो गवेसए पिंड। दुविहा गवसणा पुण दव्वे भावे इमा दवे॥४५०॥ जियसत्तुदेविचित्तसभपविसणं कणगपिट्ठपासणया। डोहल दुब्बल पुच्छा कहणं आणाय पुरिसाणं॥१॥सीवन्निसरिसमोदगकरणं सीवन्निरुक्खहेढेसुआगमण कुरंगाणं पसत्थअपसत्थउवमा 3॥२॥ विइयमेयं कुरंगाणं, जया सीवन्नि सीदई। पुरावि वाया वायंति, न उणं पुंजगपुंजगा॥३॥ हस्थिगहणंमि गिम्हे अरह हिं भरणं तु सरसीणी अच्चुदएण नलवणा अभिरूढा गयकुलागमण॥४॥ विइय मेयं गयकुलाणं, जहा रोहंति नलवणा। अन्नयावि झरंति सरा, न एवं बहुओदगा॥५॥ण्हाणाईसु विरइयं आरंभकडं तु दाणमाईसुआयरियनिवारणया अपसत्थितरे उवणओ ॥६॥ धम्मइ अजवयरे लंभो वेब्वियस्स नभगमणी जेट्ठामूले अट्ठम उवरि हेढा व देवाणं॥७॥आयावणऽटमेणं जेवामूलंमि धम्मरुइणो उगमणऽन्नगामभिक्खट्ठया य देवस्स अणुकंपा॥२३२॥भा०कोंकणरूवविउव्वण अंबिल छड्डेमऽहं पियसु पाणीछड्डेहित्तिय बिइओ तं गिण्ह मुणित्ति उवओगो॥३॥ तण्हाछुहाकिलंतं दठूणं कुंकणो भणइ साहं। उज्झामि अंबकंजिय अजो! गिहाहि णं तिसिओ॥४॥ सोऊण कोंकणस्स य साहू वयणं इमं विचिंतेइ। गविसणविहिए निउणं जह भणिों सव्वदंसीहिं ॥५॥ ॥श्री ओधनियुक्तिसूत्र
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पू. सागरजी म. संशोधित
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