SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो घराण वा मझेो हत्थं हत्थं मुत्तुं मझे सो नरवइस्स भवेप्र०२७॥ उग्गह काइयवज छंडण ववहारु लब्भए तत्थो गारविए पन्नवणा तव चेव अणुग्गहो एस ॥९॥ जइ दोण्ह एग भिक्खा न य वेल पहुप्पए तओ एगो सव्वेवि अत्तलाभी पडिसेहमणुन पियधम्म ४२०॥ अमणुन अनसंजोइया उसव्वेविणेच्छण विवेगो।बहुगुणतदेक्कदोसे एसणबलवं नउ विगिंचे॥१॥ इत्थीगहणे धम्म कहेइ क्यठवण गुरुसमीवंमि। इह चेवोवर रज्जू भएण मोहोवसम तीए॥२॥साणा गोणा इयरे परिहरऽणाभोग कुड्डकडनीसा। वारइ य दंडएणं वारावे वा अगारेहिं॥३॥ पडिणीयगेहवजण अणभोगपविट्ठ बोलनिक्खमणी मझे तिण्ह घराणं उवओग करेउ गेण्हेज्जा॥४॥ वेंटल पुट्ठो न याणे आयनातीणि वजए ठाणे सुद्धं गवेस उंछं पंचऽइयारे परिहरंतो॥५॥ जहणेण चोलपट्टो वीसरणालू गहाय गच्छेजा। उस्सग काउ गमणे मत्तयऽगहणे इमे दोसा॥६॥ आयरिए य गिलाणे पाहणए दुलहे सहसला। संसत्तभत्तपाणे मत्तगगहणं अणुनाय॥७॥ पाउग्गायरियाई कह गिण्ह3 मत्तए अगहियंमि। जा एसि विराहणया दवभाणे जं दवेण विणा॥२२९॥भा०। दुल्लहदव्द व सिया ध्याइ गिण्हे उवग्गहकर तु। पउरऽन्नपाणल्भो असंथरे कत्थ् य सिया ?॥२३०॥ संसत्तभत्तपाणे मत्ता सोहेउ पक्खिवे उवरि । संसत्तगं च णा परिहवे सेसरक्वट्ठा॥२३१॥ भा० गेलनकज्जतुरिओ अणभोगेणं च लित्त अगहणी अणभोग गिलाणहा उस्सग्गादीणि नवि कुज्जा॥८॥ जस्स य जोगमकाऊण निगमो न लभई तु सच्चित्ती न य वत्थपायमाई तेण्णं गहणे कुणसु तम्हा॥९॥ सो आपुच्छि अणुनाओ सम्गामे हिंड अहव परगा। सग्गामे सइकाले पत्ते || श्री ओपनियुक्तिसूत्र॥ | ४५ । पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy