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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्थवि असोयवाईसु। तहिअंतु सद्दकरणं आउलगमणं कुरुकुया य ॥२॥ अव्वोच्छिना तसा पाणा, पडिलेही न सुज्झई। तम्हा | हट्ठपहस्स, अवटुंभो न कप्पई ॥३॥ संचर कुंथुद्देहिअलूयावेहे तहेव दाली आ घरकोइलिआ सध्ये विस्संभर उंदुरे सरडे ॥४॥ संचारगा चउद्दिसि पुस्विं पडिलेहिएवि अन्नेति। उद्देहि मूल पडणे विराहणा तदुभए भेओ ॥१८६॥ भा० लूयाइचमढणा संजमंमि आयाए विच्छुगाईया एवं घरकोइलिआ अहिउंदुरसरडमाईसु॥१८७॥ भा० अतरंतस्स 3 पासा गाढं दुक्खंति तेणऽवटुंभ।संजयपट्टी थंभे सेलछुहाकुड्डविट्टीए॥५॥ पंथं तु वच्चमाणा जुगंतरं चक्खुणा व पडिलेहा। अइदूरचक्खुपाए सुहुमतिरिच्छागय न पेहे ॥६॥ अच्चासननिरोहे दुक्खं दहुँपि पायसंहरण। छक्कायविओरमणं सरीर तह भत्तपाणे य॥७॥ उड्ढमुहो कहरत्तो अवयक्खंतो वियक्खमाणो यो बातरकाए वहए तसेतरे संजमे दोसा॥८॥ भा० निरवेक्खो वच्चंतो आवडिओ खाणुकंटविसमेसु। पंचण्ह इंदियाणं अनतरं सो विराहेजा॥९॥ भत्ते वा पाणे वा आवडियपडियस्स भिन्नपाए वा। छक्कायविओरमणं उड्डाहो अपणो हाणी॥१९०॥ दहि घय तवं पयमंबिलं व सत्थं तसेतराण भवे। खद्धमि य जणवाओ बहुफोडो जं च पारिहाणी॥१९१॥ भा०॥ पत्तं च भागमाणे हवेज पंथे विराहणा दुविहा। दुविह। य भवे तेणा परिकम्मे सुत्तपरिहाणी॥८॥ एसा पडिलेहणविही कहिया भे धीरपुरिसपनत्ता। संजमगुणड्ढगाणं निग्गंथाणं महरिसीण ॥९॥ एयं पडिलेहणविहिं जुंजता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम्म अणेगभवसंचियमणंत॥३३०॥ पिंडं व एसणं वा एत्तो वोच्छं गुरूवएसेणी गवेसणगहणघासेसणाए तिविहाए विसुद्धं ॥१॥ ॥श्री ओपनियुक्तिसूत्र] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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