SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गहणीलंबणभिक्खा दुविहा जहण्णमुक्कोस तिअपणए॥१५०॥भा०एगत्थ होइ भत्तं बिइयंमि पडिग्गहे दवं होइ। पाउगायरियाई मत्ते बिइए 3 संसत्तं ॥२॥ जइ रित्तो तो दव मत्तगंमि पढमालियाए करणं तु। संसत्तगहण दवदुलहे य तत्थेव जं पत्तं ॥३॥ अंतरपल्लीगहियं पढमागहियं व सव्व भुंजेज्जा धुवलंभसंखडीयं व जंगहियं दोसिणं वावि॥४॥ दरहिंडिए व भाणं भरियं भोच्चा पुणोवि हिंडिजा। कालो वाऽइक्कमई भुंजेज्जा अंतरा सव्वं॥५॥ एसो 3 विही भणिओ तंमि वसंताण होइ खेत्तंमिपडिलेहणंपि इत्तो वोच्छं अप्पक्खरमहत्थं॥६॥ दुविहा खलु पडिलेहा छउत्थाणं च केवलीणं च। अभितर बाहिरिआ दुविहा दव्वे य भावे | य॥७॥ पाणेहि 3 संसत्ता पडिलेही होइ केवलीणं तु संसत्तमसंसत्ता छउत्थाणं तु पडिलेहा॥८॥ संसजइ धुवमेअं अपेहियं तेण पुव्व पडिलेहे। पडिलेहिअपि संसजइत्ति संसत्तमेव जिणा॥९॥नाऊण वेयणिज अइबहुअंआउअंच थोवागो कम्म पडिलेहेङ वच्चंति जिणा समुग्धाय॥२६०॥ संसत्तमसंसत्ता छउमत्थाणं तु होइ पडिलेहा। चोयग जह आरक्खी हिंडिताहिंडिया चेव॥१॥ तित्थयरा रायाणो साहू आरक्खि भंडगं च पुरं। तेणसरिसा य पाणा तिगं च रयणा भवो दंडो॥२॥ किं कय किं वा सेसं किं करणिजं तवं च न करेमि? पुव्वावरत्तकाले जागरओ भावपडिलेहा॥३॥ठाणे उवगरणे या थंडिलउवयंभमागपडिलेहा। किंमाई पडिलेहा पुवण्हे चेव अवरण्हे ॥२६४॥ ठाणनिसीयतुयट्टणउवगरणाईण गहणनिक्खेवे। पुव्वं पडिलेहे चक्खुणा 3 पच्छ। पम्जेज्जा॥१५१॥ भा० उड्ढनिसीयतुयट्टण ठाणं तिविहं तु होइ नायव्वी उड्ढं उच्चाराई गुरुमूलपडिकमागम्म॥२॥ पक्खे ||श्री ओपनियुक्तिसूत्र। | २९ । पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy