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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुविहा विराहणा जाय उवहिणा 3 विणातणअग्गिगहणसेवण वियालगभणे इमे दोसा॥२॥ पविसणभग्गणठाणे वेसित्यिदुगुछिए य बोद्धव्वेसज्झाए संथारे उच्चारे चेव पासवणे॥३॥सावयतेणा दुविहा विराहणा जाय उवहिणा उविणा। गुम्मियगहणाऽऽहणणा गोणाईचमढणा चेव॥४॥ फिडिए अण्णोण्णारण तेण य राओ दिया य पंथंमि। साणाइ वेसकुत्थिन तवोवणं मूसिआ जं च॥५॥ अप्पडिलेहि अकंटाविलंमि संथारगंमि आयाए। छक्कायसंजमंमि य चिलिणे सेहऽनहाभावो ॥६॥ कंटगथाणुगवालाविलंमि जइ वोसिरेज आयाए। संजमओ छक्काया गमणे पत्ते अइंते य॥७॥ मुत्तनिरोहे चक्खू वच्चनिरोहेण जीवियं चयइ। उड्ढनिरोहे कोढे गेलनं वा भवे निसुवि॥८॥ जइ पुण वियाल पत्ता पए व पत्ता उवस्मयं न लभे। सुनघरदेउले वा उजाणे वा अपरिभोगे॥९॥ आवाय चिलिमिणीए रपणे वा निभए समुद्दिसणी सभए पच्छन्नासइ कमढय कुरुया य संतरिआ॥२००॥ कोढग सभा व पुब्दि काले वियाराइभूमिपडिलेहो। पच्छा अइंति रत्तिं पत्ता वा ते भवे रत्ति॥१॥ गुम्भियभेसण सभणा निब्भय बहिठाण वसहिपडिलेहा। सुन्धर पुत्वभणिअं कंचुग तह दारुदंडेणं ॥२॥ संथारगभूभितिगं आयरियाणं तु सेसगाणेगा। रुंदाए पुष्फइन्ना मंडलिआ आवली इयरे॥३॥ संथारग्गहणाए बेंटिअउक्खेवणं तु कायव्वी संथारो घेत्तव्यो मायामयविष्यमुक्केणं॥४॥ पोरिसिआपुच्छणया सामाइय उभय कायपडिलेहा। साहणिये दुवे पट्टे पमज्ज भूमिं जओ पाए॥५॥ अणुजाणह संथारं बाहुवहाणेण वामपासेणं। कुक्कुडिपायपसारणअतरंत पमज्जए भूमि॥६॥संकोए संडासंउव्वत्तंते य कायपडिलेहादिव्वाईउवओगंणिस्सासनिरंभणाऽऽलोयो७॥ ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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