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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसहमिओ गंतु उत्तरे पासेो एवं पुव्वुत्तरओ वसहिं गिण्हिज्ज निहोसं॥८॥ रुइए महथंडिल्लं पेहिज्जा चोयगो भाइ एवंी ठायंतच्चिय तुज्झ य अभंगलं कुव्वहा भंते!॥९॥आहायरिओ लोए नगरनिवेसंमि पढमवत्थुमि। सीयाणं पेहिजइ न य दिटुं तं अमंगलयं ॥१०॥ दिसा अवरदक्खिणा दक्खिा य अवरा य दक्खिणापुव्वा अवरुत्तरायपुव्वा उत्तरपुव्वुत्तरा चेव॥११॥ उद्दिढकमेणासिं पढम पडिलेहिऊण वाघाए। बीयं पडिलेहिजा एवं उद्देसओऽहाणी॥१२ प्र०॥ दव्वे तणडगलाई अच्छणभाणाइधोवणा खेत्ते काले उच्चाराई भावेण गिलाणकूरुवमा ॥७८॥भा० जाव गुरूण य तुझ य केवइया? तत्थ सागरेणुवमा। केवइकालेणेहिह? सागार | ठवंति अण्णेवि॥४॥ पुन्बुद्दिढे इच्छइ अहव भणिज्जा हवंतु एवइया। तत्थ न कप्पइ वासो असई खेत्ताणऽणुनाओ॥५॥ सकारो सम्भाणो भिक्खग्गहणं च होइ पाहुणए। जइ जाणउ वसइ तहिं साहम्मिअवच्छलाऽऽणाई॥६॥जइ तिनि सव्वगमणं एसुन एसुत्ति | दोसुविय दोसा।अण्णपहेणगुणता निययावासोऽह मा गुरुणो॥७॥ गंतूण गुरुसभीवं आलोएत्ता कहेंति खेत्तगुणान य सेसकहण मा होज संखडं रत्ति साहेति ॥८॥ पढमाए नस्थि पढमा तत्थ 3 घयखीरकूरदहिलंभो। बिइयाए बिइ तइयाए दोवि तेसिंच धुवलंभो॥९॥ ओहासिअधुवलंभो पाउग्गाणं चउत्थिए नियमा। इहरावि जहिच्छाए तिकालजोगं च सव्वेसिं॥१६०॥ मयगहणं आयरिओ कत्थ वया मोत्ति? तत्थ आयरिओ( जागरिया)।खुभिआ भगति पढमतं चिअ अणुओगतत्तिल्ला ॥१॥बिइयं च सुत्तगाही उभयग्गाही अतइययं खेत्तो आयरिओ अ चउत्थं सो उ पमाणं हवइ तत्थ॥२॥ मोहब्भवो 3 बलिए दुब्बलदेहो न साहए जोए। ॥श्री ओधनियुक्तिसूत्र।। | १७ । पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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