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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवायसंरक्खणाइ पंचेवासेसंजा थंडिल्लं असईए अण्णगामंमि॥३॥अपहप्पंते काले तं चेव दुगाउयं नइक्काम। गोमुत्तिअदड्ढाइसु || भुंजइ अहवा पएसेसुं॥६४॥ भा० दिट्ठमदिट्ठा दुविह। नायगुणा चेव हुंति अनाया। अहिठ्ठावि य दुविहा सुअमसुअ पसत्थमपसत्था॥९६॥ दिट्ठा व समोसरणे न य नायगुणा हवेज ते समणा। सुअगुण पसत्थ इयरे समणुनिअरे य सव्वेवि॥७॥ जइ सुद्धा संवासो होइ असुद्धाण दुविह पडिलेहो अभितरबाहिरिआ दुविहा दव्वे य भावे य॥८॥ घाइतलिअदंडग पाउय संलग्गिरी अणुवओगो। दिसि पवण गाम सूरिय वितहं अच्छोलणा दव्वे॥९॥ विकहा हसिउग्गाइय भित्रकहाचकवालछलिअकहा। माणुसतिरिआवाए दायणआयरणया भावे ॥१००॥ बाहिं जइवि असुद्धा तहावि गंतूण गुरु परिक्खा । अहव विसुद्धा तहवि 3 अंतो दुविहा उ पडिलेह॥१॥ पविसंत निमित्तमणेसणेव साहइन एरिसा समणा अम्हंपि ते कहती कुक्कुडखरियाइठाणंच॥२॥ दव्यंमि ठाणफलए सेज्जासंथारकायउच्चारे। कंदप्पगीयविकहावुग्गहकिड्डा य भावंमि॥३॥ संविग्गेसु पवेसो संविग्गऽमणुन बाहि किइकम्मी ठवणकुलापुच्छणया एत्तोच्चिय गच्छ गविसणया॥४॥ संविग्गसंनिभद्दा सुन्ने निइयाइ भोत्तु हाछंदे। वच्चंतस्सेतेसुं वसहीए मग्गणा होइ॥५॥ वसही समणुण्णेसुं निइयादमणुण्ण अण्णहिं निवेए। संनिगिहि इत्थिरहिए सहिए वीसु घरकुडीए॥६॥ अहणुव्वासिअ सकवाड निब्बिले निच्चले वसइ सुण्णे। अनिवेइएयरेसिं गेलने न एस अहंति॥७॥ नीयाइअपरिभुत्ते सहिएयर पक्खिए व सज्झाए। कालो सेसमकालो वासो पुण कालचारीसु॥८॥ तेण परं पासत्थाइएसु न य वसइऽकालचारीसु। | ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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