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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिअरिज॥८॥फिडिओवपरिरएणं मंदगई वावि जावन मिलिज्जासोऊणं व गिलाणं ओसहकज्जे असई एगो॥९॥अइसेसिओ व सेहं असई एगाणियं पठावेज्जा (प्र० पयट्टेजा)। देवय कलिंगरुवणा पारणए खीर रुहिरं च ॥३०॥ चरिमाए संदिट्ठो ओगाहेउण मत्तए गंठी। इहरा कयउस्सग्गो परिच्छ आमंतिआ सगणं॥१॥ गच्छेज को णु? सव्वेऽवऽणुग्गहो कारणाणि दीविता। अमुओ एत्थ समत्थो अणुग्गही उभय किइकम्म॥३२॥ भाष्यी पोरिसिकरणं अहवावि अकरणं दोच्च पुच्छणे दोसा। सरण सुय् साहु सन्ती अंतो बहि अनभावणं॥९॥बोहण अपडिबुद्धे गुरुवंदण घट्टणा अपडिबुद्धेोनिच्चलणिसण्णझाई दर्छ चिढे चलं पुच्छे ॥१०॥ अप्पाहि अणुनाओ ससहाओ नीइ जा पहायंति। उवओगं आसण्णे करेइ गामस्स सो उभए॥१॥ हिमतेणसावयभया दारा पिहिया पहं अयाणंतो। अच्छइ जाव पभायं वासियभत्तं च से वसभा॥२॥ठवणकुल संखडीए अणहिंडते सिणेहपयवजी भत्तढिअस्स गमणं अपरिणए गाउयं वहइ॥३॥ अत्थंडिलसंकमणे चलवक्खित्तऽणुवउत्तसागरिए। पडिवक्खेसु 3 भयणा इयरेण विलंबणं लोग॥४॥ पुच्छाए तिण्णि तिआ छक्के पढम जयणा तिपंचविहा। आउम्मि दुविह तिविह। तिविहा सेसेसु काएसु॥५॥ पुरिसो इथि नपुंसग एकेक्को 2 मझिमो तरुणो। साहम्मिअन्नधम्मिअगिहत्थदुग अप्पणा तइओ॥६॥ साहम्मिअपुरिसासइ मज्झिमपुरिसं अणुण्णविअ पुच्छे। सेसेसु होति दोसा सविसेसा संजईवग्गे॥७॥ थेरो पहं न याणइ बालो पवंचे न याणई वावि। पंडिस्थिमझ संका इयरे न याणंति संकाय ॥८॥पासहिओ य पुच्छेज वंदमाणं अवंदमाणं वा।अणुवइऊण व पुच्छे तुण्हिवं माय पुच्छेज्जा॥९॥ | ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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