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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुणइ॥२१ भा० भावोक्यारमाहेउम्प्यगे किंचिनूणचरणग्गो।आहाकम्भग्गाही अहो अहो नेइ अयाणं॥१००॥ बंधइ अहे भवाऊ || परेइ अहोमुहाई कम्माई। घणकरणं तिव्वेण 3 भावेण चओ उवचओ य॥१॥ तेसिं गुरूणमुदएण अप्पगं दुग्गईए पवडंती न चएइ विधारेउं अहरगतिं निंति कमाई॥२॥ अट्टाए अणट्टाए छक्कायपमद्दणं तु जो कुणइ अनियाए य नियाए आयाहम्मं त्यं बेति॥३॥ जाणंतु अजाणतो तहेव (नि)दिसिय ओहओ वावि जाणगमजाणगे वा वहेइ अनिया निया एसा॥२२॥ भादव्वाया खलु काया भावाया तिनि नाणमाईणिो परपाणपाडणरओ चरणायं अपणो हणइ॥४॥ निच्छयनयस्स चरणायवि( णोव )घाए। नाणंदसणवहोऽवि ववहारस्स 3 चरणे हयंमि भयणा 3 सेसाणी५॥ दव्वंमि अत्तकम्म जं जो 3 ममायए तगंदब्बी भावे असहपरिणओ परकम्मं अत्तणो कुण॥६॥आहाकम्मपरिणओ फासयमवि संकिलितपरिणामोआइयमाणो बज्झइतंजाणस अत्तकम्मन्ति॥७॥ परकम्म (म)त्तकम्भीकरेइ तं जो 3 गिहिउँ भुंजे। तत्थ भवे परकिरिया कहनु अत्त्य संकमई?॥८॥ कूडउवमाइ केई परप्पउत्तेऽवि बेति बंधोत्तिभणइ गुरूवि पमत्तो बन्झइ कूडे अदक्खो य॥९॥ एमेव भावकूडे बझइ जो असुभभावपरिणामो। तम्हा उ असुभभावो वज्जेयव्यो पयत्तेणं॥११०॥ कामं सयं न कुव्वइ जाणंतो पुण तहावि तागाही। वड्ढेइ तप्पसंग अगिण्हमाणो 3 वारे ॥१॥अत्तीकरेइ कम पडिसेवाईहिं तं पुण इमेहि। तत्थ गुरूआइपयं लह लह लहुगा कमेणियरे॥२॥ पडिसेवणमाईणं दाराणऽणुमायणावसाणाणी जहसंभवं सरूवं सोदाहरणं पवक्वामि॥३॥अनेणाहाकम्भ उवणीयं असइ चोइओ श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021043
Book TitleAgam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size11 MB
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