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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) उसभमजियं च वंदे संभवमभिणंदणं च सुमइंच ५उम्प्यहं सुपासं जिणं च चंदप्यहं वंदे ॥२९.२॥ (४२) सुविहिं च पुष्पदंतं सीअल सिजंस वासुपुजं च विमलमणंतं च जिणं धम्म संतिं च वंदामि ॥ २९.३॥ (४३) कुंथु अंच मल्लिं वंदे मुणिसुव्व्यं नमिजिणं च वंदामि रिटनेमि पासं तह वद्धमाणं च ॥२९.४॥ (४४) एवं मए अभिथुआ विहुयरयमला पहीणजरमणा चवीसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥ २९.५॥ (४५) कित्तिय वंदिय महिया जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा आरुग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥ २९.६॥ (४६) चंदेसुनिम्मलया आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ २९.७॥ (४७) सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं रेमि काउस्सगं वंदणवत्तियाए पूअणवत्तियाए सक्कारवत्तियाए सम्माणवत्तियाए बोहिलाभवत्तियाए निरुवसग्गवत्तियाए सद्धाए मेहाए थिईए धारणाए अणुप्पेहाए वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं[अन्नत्य० ॥२८॥ सूत्र.30 (४८) पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमसामि॥१०॥1 (४९) तमतिमिरपडल विद्धं सणस्स सुरगणनरिंदमहियस्स सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥११॥2 (५०) जाईजरामरण सोग पणासणस्स, कल्लाणपुक्खल विसालसुहावहस्स को देवदाणवणरिंदगणच्चिअस्स, ॥श्रीआवश्यक सूत्र ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021042
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size7 MB
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