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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिणिंदो सुरकयसीहासणोवविठ्ठो यो तं चाविहदेवनिकायनिम्मियं, जह पवरसमवसरणं, तुरियं करंति देवा, जं रिद्धीए जगं तुलइ॥४॥ जत्थ समोसरिओ सो भुवणेकगुरू महायसो अरहा। अट्ठमहपाडिहेरयसुचिंधियं हवइ य तित्थियं नाम॥५॥ जह निद्दलइ असेस मिच्छत्तं चिक्कणंपि भव्वाणी पडिबोहिऊण मग्गे ठवेइ जह गणहरा दिक्खं ॥६॥ गिण्हंति महामइणो सुत्तं गंथंति जहव य जिणिंदो। भासे कसिणं अत्थं अणंतगमपनवेहिं तु॥७॥ जह सिझइ जगनाहो महिमं निव्वाणनामियं जहय। सव्वेवि सुरवरिंदा असंभवे तह विमोच्चंति॥८॥ सोगत्ता पगलतंसुघोयगंडयलसरसइपवाह। कलुणं विलावसई हा सामि! कया | अणाहत्ति॥९॥ जह सुरहिगंधगमीणमहंतगोसीसचंदणदुभाणी कठेहिं विहिपुव्वं सकारं सुरवरा सव्वे॥१००॥ काऊणं सोगत्ता सुन्ने दसदिसिपहे पलोयंता। जह खीरसागरे जिणवराणं (अट्ठी) पक्वालिऊणं च॥१॥ सुरलोए नेऊणं आलिंपेऊण पवरचंदणरसेणी मंदारपारियाययवत्तसहस्सपत्तेहिं ॥२॥ जह अच्चेऊण सुरा नियनियभवणेसु जहवय थुगंति (तं सव्वं महया | वित्थरेणअरहंतचरियाभिहाणे)। अंतकडदसाणं तं, मम्झाउ कसिण विनेयं॥३॥ एत्थं पुण जं पायं तं मोत्तुं जइ भणेज तावेयं। हवइ असंबद्धरुयं गंथस्स य वित्थरमणत॥४॥ एयंपि अपत्थावे सुमहंतं कारणं समुवइट्ठ। जं वागरियं तं जाण भव्वसत्ताणऽणुग्गहट्ठाए ५॥ जह वा जत्तो जत्तो भक्खिज्जइ मोयगो सुसंकरिओ। तत्तो तत्तोवि जणे अइगुरुयं माणसं पीई॥६॥ एवमिह अपत्यावेवि भत्तिभरनिमाण परिओसी जणयइ गुरुयं जिणगुणगहणेकरसक्खित्तचित्ताणं॥७॥ एयं तु जं In श्री महानिशीथसूत्र । पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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