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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जं संसाराणुबंधिं च?॥४॥ तं सुरविभाणविहवं चिंतियचवणं च देवलोगाओ। अइसिक्कयचिय हिययं जं नवि सथसिक्करं जाइ॥५॥|| नरएसु जाई अइदुस्सहाई दुक्खाई परमतिक्खाई। को वन्नेई ताई जीवंतो वासकोडिंपि॥६॥ ता गोयम! दसविहधम्मघोरतवसंजमाणुट्ठाणस्सा भावत्वमिति नाम तेणेव लभेज अक्खयं सोक्ख॥७॥ ति, नारगभवतिरियभवे अमरभवे सुरवइत्तणे वावि। नो तं लब्भइ गोयम! जत्थ व तत्थ व मणुयजम्मे॥८॥ सुमहच्चंतपहीणेसु संजमावरणनामधेजेसु। ताहे गोयम! पाणी भावत्थ्यजोग्गयमुवेइ ॥९॥ जम्भंतरसंचियगुरुयपुत्रपब्भारसंविढनेणी माणुसजमेण विणा णो लब्भइ उत्तमं धम्म ७०॥ जस्साणुभावओ सुचरियस्स निस्सलदंभरहियस्सो लब्भइ अउलमणतं अक्खयसोक्खं तिलोयग्गे॥१॥ तं बहुभवसंचियतुंगपावकम्मरासिडहणटुं। लद्धं माणुसजम्मं विवेगमाईहिं संजुत्त॥२॥ जो न कुणइ अत्तहियं सुयाणुसारेण आसवनिरोह। छत्तिगसीलंगसहस्सधारणेणं तु अपमत्ते॥३॥ सो दीहरअव्वोच्छिनधोरदुक्खग्गिदावपज्जलिओ। उच्चोव्वेयसंसत्तो अणंतहत्तो सुबहु कालं॥४॥ दुग्गंधामेन्झविलीणखारपित्तोन्झसिंभपडिहत्थे। वसजलुसपूयदुहिणचिल्लिचिले रुहिरचिक्खल्ले ॥५॥ कढकढकढंतचलचलचलस्स ढलढलढलस्स रज्जतो। संपिंडियंगमंगो जोणी जोणी वसे गब्। एकेकाभवासेसु, जंतियं, पुणरवि भमेज ॥६॥ता संतावुव्वेयगजम्मजरामरणगब्भवासाई संसारियदुक्खाणं विचित्तरूवाण भीएण॥७॥भावत्थवाणुभावं असेसभवभयखयंकरं नाउं तत्थेव महता उज्जमेण दढमच्चंतं पयइयव्वं ॥८॥ इय विजाहरकिन्नरनरेण ससुरासुरेणवि जगेणी संथुव्वंते ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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