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कह सभणी, जं दिटुं समणीहिं तं कहे ॥५॥ असावजकहा समणी, बहुआलंबणा कहा। मायखामगा समणी, पाविट्ठा बलमोडी कहा॥६॥ लोगविरुद्धकहा तह य, परववएसालोयणी। सुयपच्छित्ता तह य, जायादीमयसंकिया॥७॥ भूसागारभीरुया चेव, गारवतियदूसिया तहा। एवमादिअणेग भावदोसवसगा पावसल्लेहिं पूरिया॥८॥अणंता अणतेण कालसमएण, गोयमा! अइईतेणी अणंताओ समणीओ, बहुदुक्खावसहं गया॥९॥गोयमा! अणंताओ चिटुंति, जाऽणादी सालसालिया। भावदोसेक्कसल्लेहिं( भुंजमाणीओ कडुविरसंघोरुग्गुग्गतरं फलं॥१६०॥ चिट्ठइस्संति अज्जावि, तेहिं सल्लेहिं सल्लिया। अणतंपि अणागयं कालं, तम्हा सल्लं सुहममवि, समणी णो धारेज्जा खणंति॥१॥ धगधगधगस्स पजलिए, जालामालाउले दढं हुयवहेवि महाभीमे, सरीरं डझए सुहं ॥२॥ | पयलंतंगाररासीए, एगसि झंप पुणे जले। थल्लिंतो सरितो सरियं, जं मरिजिपि सुक्षरं ॥३॥ खंडियस्स सहत्थेहिं, एकेक्कभंगावयवं।
जं होभिजइ अग्गीए, अणुदियहपि सुक्करं ॥४॥ खरफसतिक्वकरवत्तदंतेहिं फालावि। लोणूससज्जियाखारं, जं धत्ता ससरीरं | अच्चंतसुकरं। जीवंतो सयमवी सकं, सलं उत्तारिऊण ॥५॥ जवखारहलिद्दादिहि, जं आलिंपे नियं तj। मयंपि सुकरं छिंदेऊण,
सहत्थेणं जो घेत्ते सीसं नियं॥६॥ एयंपि सुक्षरमलीहं, दुक्करं तवसंजमी नीसल्लं जेण तं भणियं, सालो य नियदुक्खिओ॥७॥ भायादभेण पच्छनो, तं पायडिउंण सक्षए। राया दुच्चरियं पुच्छे, अह साहइ देहसव्वस्सं॥८॥ सव्वस्सपि पएज्जा उ नो नियदुच्चरियं कहे। राया दुच्चरियं पुच्छे, साह पुहइंपि देमि ते॥९॥ पुहई रज तणं मन्ने, नो नियदुच्चरियं कहे। राया जीयं निकितामि, ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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